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________________ ( १९७ ) तथा कंद मूल खाय तथा मुर्गी आदिक के अण्डे (वचे) मार खाय तो० ७ प्र० अधूरे गर्भ गल २ जायें किस कर्म से ? उ० पत्थर मार २ के वृक्ष के कच्चे पक्के फल फूल पत्ते तोड़े तथा पंछियों के आलने तोड़े तथा मकड़ी के जाले उतारे तो ? ८ प्र० गर्भ में ही मर २ जाय तथा योनिद्वार में आ के मरे किस कर्म से ? उ० महाऽऽरम्भ जीव हिंसा करे मोटा झूठ बोले तथा रूपोत्तम साधु को असूझता आहार पानी देवे तो० ९ प्र० अन्धा किस कर्म से होय ? उ० मक्ष्यालय तोड़ के शहद निकाले भिंड ततइया मच्छर को धूआं देके आग लगा के मारे तथा क्षुद्र जीवों को डुबो के मारे तो० | १० प्र० काणां किस कर्म से होय ? ' उ० हरे वनस्पति का चूर्ण करे तथा फल फूल | वा वीज वीधे तो -
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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