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चारी विक्रय शक्ति करके नाना प्रकार के रूप बना कर नाना प्रकार के पुष्प फल सुगन्ध आदि सुखों के भोगी होते हैं और इन का सम्पूर्ण आयु आदि स्वरूप देखना हो तो जैन के शास्त्रों में बखूबी देख लेना । सो ये ४ चार गति रूप संसार का स्वरूप केवल ज्ञानी ऋषभ देव से ले कर महाबीर स्वामी पर्यंत अवतारों ने केवल दृष्टि करके करामलकवत् देखा है और परोपकार निमित्त शास्त्र द्वारा भाषण किया है । और मैंने तो यहां किञ्चित नाम मात्र ही भाव लिखा है और | अब,२ दूसरे, जो ४ चार गति में से किसी एक गति में से आकर मनुष्य गति पाता है तिस मनुष्य के ४ चारों गतियों के आश्रय अन्यान्य छः२ लक्षण प्रकरण में कहे हैं।