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________________ (१७८ ) गेरे हैं उनको सजी आदिक का महा क्षार वत् क्षार के विक्रय से कुण्ड भर के उस में उन के तनु में पच्छ लगा के गेर देते हैं। ॥ ५॥ और जिन्होंने जोहड तलाब में व रुके हुए पानी में कूद २ कर स्नान किये हैं| (क्योंकि उस में कम आदि काई आदि में असंख अनन्त जीव होते हैं वह देह के खार लगते ही दग्ध हो जाते हैं) सो उन को वैतरणी नदी में डुबो २ कर पीड़ा देते हैं ॥ ६॥ और जिन्होंने मदिरा, गांजा, पोस्त, भांग वा तमाकू का विष्ण अंगीकार किया है उनको रांग, तांबा, तरुआ, सीसा, गाल कर पिलाते हैं ॥ ७ ॥ और जिन्हों ने जॅम, लीख, मांगणु. भिड़, विच्छू आदि जंतुओं को नख करके पैर करके वा अग्नि करके
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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