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जीव जन्तु सुखाभिलाषि हैं यथा दशवैकालिके अध्यन ६ गाथा ११वीं सब्बे जीवावि इच्छन्ति, जीविउ नमरिजउ, तम्हा पाणवहं| घोरं, निग्गंथा वजयंतेण, १ अर्थ सर्व जीव चाहते हैं जीवना नहीं चाहते मरना यनि मरते हैं मरने से तिस कारण प्राणी वध करना घोर पाप है तिस को सदा त्यागे दयावान १ तथा अन्य शास्त्रे श्लोक । यथा मम प्रियाः प्राणास्तथा तस्यापि देहिनः । इति मत्वा न कर्तव्यो घोरः प्राणिवधो बुधैः ॥१॥ अस्यार्थः सुगमः इत्यादि ऐसा जानकर विषय भोंग से विरक्त हो कर सर्वथा षटकाय की हिंसा रूप कार्य ते पांच आश्रव हिंसा २ असत्य ३ अदान ४ मैथुन अर्थात स्त्री संग५ परिग्रह अर्थात् धनसंचय, इन पांचों का संपूर्ण त्यागी होय और १दया रसत्य ३दान