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धर्म नहीं है क्योंकि जिसको माता कह चुके | उसको मुड़ के विवाहने में धर्म को है अपितु महा अधर्म है यह तो मृखी के ठग खाने के राह अपनी कल्पना से निकाल घरे है कोई शास्त्र के अनुसार नहीं है औरेशीतला मसानी देवी भवानी मूर्ति पूजने में
ओर वट (पिप्पल) वृक्ष पूजने में और त्रस्य स्थावर की हिंसा रूप में इत्यादि अधर्म हैं | कुछ आत्मिक सुखदाता नहीं है इसलिये इन तीनों को तजो और पूर्वक सुगुप्त, सुदेव, सुधर्म को अङ्गीकार को। (६) अथ या धर्म प्रवृत्ति सा. अथ वर्ग कांनी प्रथम तो, सूत्र भगवती जी सतक ८ उगे ५३ में १४७ “पन्चन्याण का अधिकार है निमक अनुसार अतीतकाल" अर्थात् बीत गए काल
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