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( १३५ ) वत् मर जाने में सब ही मोक्ष होंगे अर्थात् आकाश में आकाश रूप हो रहेंगे तो फिर सत्य आदि धर्म का फल और मिथ्या आदि 'अधर्म का फल कौन पावेंगे और कहां भो| गंगे इत्यर्थम् ॥७॥ और कितनेक मतांतरी,
से कहते है कि जैसे सावत सीसे के विणे एक सुख दीखता है और जब सीसा फूट जाता है तब जितने सीसे के खंड होते हैं उतने ही मुम्ब दीखते हैं सो ऐसे ही ब्रह्म तो
एक ही है परन्तु ताही के अनेक खंड रूप । मई अंगों के विषे चेतनता भासमान है ।।
उत्तरपनी । यह भी तुम्हाग कहना तुम्हाग ही मुख चपेटिका रूप है क्योंकि मर्व शात्रों के और सर्व मतों के विषय में यह वृत्तांत प्रगट है कि चिदानन्द सत्यात्मा अवाण्डित अविनागी है तो फिर अखण्ड
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