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के निमित्त यत्न से ही तोड़ते हैं ॥ तो फिर उसको यह उत्तर देना चाहिये कि जब तोड़ ही लिया तो फिर यत्न काहे का हुआ यथा किसी की गर्दन तो उतारी परन्तु यत्न से उतारी। उत्तरम्-अफसोस है, कि जब काठ ही गेरा तो फिर यत्न काहे का हुआ । खैर तुम्हारे लेखे यत्न ही हुआ सही, परन्तु शास्त्र में तो भगवत् की सेवा में फल फूल चढ़ाने की आज्ञा है नहीं क्योंकि सूत्र दशा श्रुतस्कन्ध जी तथा उववाई जी तथा विवहाप्राज्ञप्ति जी में ऐसा लिखा है कि “ जब भगवान के समवसरण में सेवक जन सेवा के निमित्त आवे तब सुचित द्रव्य अर्थात् जीव सहित वस्तु को बाहर ही छोड़ दे जहा तक भगवत् जी के विराजमान होने कीसमवस