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________________ ( ११२ ) - - निदोष, जो पुरुष साधु के निमित्त फलादिक छेदे नहीं छिदावै नहीं छेदते को भला जाने नहीं और भेदे नहीं०३ और पचे नहीं ३ जो गृहस्थी ने अपने कुटुम्ब के निमित्त अन्नपानीका आरम्भ किया हो,सरस वा नीरस हो तैसा ही ग्रहण करे सो यह तो द्रव्य निर्दोष और भाव निर्दोष, सो ऐसा सरस न खाय कि जिससे काम विकाररोग विकारतथा अति आ लस्य उत्पन्न होय और ऐसा नीरस भी न खाय | कि जिससे क्षुधा निवृत्तिन होय और सडाय ध्यान न बने और रोग उत्पन्न होय तथा दुगंछा उपजे इत्यर्थः और २ दूसरे वस्त्र पात्र निर्दोष सो साधु के निमित्त बुनवाया न होय तथा मोल लिया न होय जो गृहस्थी ने अपने निमित्त बुनवाया होय वा मोल लिया होय - -
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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