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( ५ )
और फिर तिस का खण्डन करना ऐसा स्वरूप है सो जो पुरुष जैन मत में दो प्रकार के श्रद्धानी हैं एक तो मूर्तिपूजक और दूसरे निराकार ध्याता, सो इन के अभिप्राय का जानकार होगा और सूत्र का वाकिफ़कार होगा सो समझेगा न तो नहीं । और जो द्वितीयभाग है तिस में जैनधर्म अर्थात क्षमा दया रूप जो सत्य धर्म है तिसकी पुष्टता है सो द्वितीय भाग का बांचना और समझना हर एक को सुगम है और इस दूसरे भाग के बांचने और समझने से हर एक पुरुष को वा स्त्री को ८ आठ प्रकार का बोधरूप लाभ होगा सो १ प्रथम तो देव गुरु धर्म का जानकार होगा । और २ द्वितीय स्वमत परमत का जानकार होगा । और तृतीय
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