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विवेक दृष्टि करके देखो कि इस में जैनी लोक कौन सी बात अयोग्य कहते हैं और नास्तिक कैसे हुए और जो पुरुष जैन को नास्तिक कहते हैं वे जैन के और नास्तिक आस्तिक के अर्थ से अनजान हैं क्योंकि नास्तिक वे होते हैं जो परमेश्वर और जीवों को नहीं मानते हैं और पुण्य पाप रूप कर्मों को और कर्मों के फल स्वर्ग नर्क को और |बंध मोक्ष को नहीं मानते हैं आगे जो जिस | की समझ में आवे । इस ज्ञानदीपिका ग्रन्थ के दो भाग हैं सो प्रथम भाग में तो आत्माराम संवेगी रचित जेन तत्वादशं अथ है तिस में जो २ शास्त्रों से विरूद्ध अर्थात सूत्र से अनमिलत कथन हैं तिन के जबाब सवाल हैं और विरुद्धता को प्रगट करना
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