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समझो क्योंकि उसका नाम ही मुख वस्त्रिका है परन्तु तुम बताओ कि हाथ वस्त्रिका कहां से चली है ? अरे ! भाई ! तुमने तो अपनी तरफ से मुह खोलने के हठ में बहुतेरे सूत्रों में से अर्थ का अनर्थ करके लिखा है जैसे मुख पत्ति चर्चा पोथी बूटे राय जी की रची हुई छपीअहमदाबाद वि०सव्वत१९३४ में जिस की पृष्ठ१४५ में लिखा है कणोडिया एवा मुहणंत गेणवा विणा इरीयं पड़िकम्मे मिछुकड़ पुरिमटुंवा ॥ महानिशीथनी चूलकामध्ये सूत्र ४५मा अस्यार्थःक०मुखपत्तिकन्ना में थापण | करीने वि०तथा मुख पत्तिआदिक सुंमुख ढांके विनाई जो इरियावहि पड़िकमेतो दंड आवै एतलै मुखढांकीने इरियावहि पड़िकमें तो दंड आवै नही इहांपण कन्ना विषे मुखपत्ति
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