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तीसरा अध्याय ]
अन्तर्जगत् ।।
तीसरे, कोई विस्मृत विषय स्मरण करना हो तो उसके जो जो आनुषंगिक विषय याद हों, उनकी आलोचना करते करते मूल विषय स्मरण हो आता है । जैसे, किसी पूर्वपरिचित व्यक्तिका नाम भूल जाने पर, उस नामके साथ जिस जिस नामका सादृश्य समझ पड़े उस उस नामका खयाल करते करते भूला हुआ नाम- स्मरण हो आता है ।
४-स्मृतिका हास और वृद्धि कैसी होती है ?-जैसे किसी विषय पर अधिक समय तक या अनेक वार मन लगानेसे वह बहुत दिन तक याद रहता है और भूल जाने पर भी सहजमें ही स्मरण हो आता है, वैसे ही किसी विषयके ऊपर बहुत दिन तक ध्यान न देनसे उसकी स्मृति घटती है,
और बीच बीचमें उस ओर मनोनिवेशसे उसकी स्मृति बढ़ती है। - इसके सिवा स्मृतिके घटने-बढ़नेके और भी कारण हैं। अनेक स्थलों पर शरीरकी अवस्थाके ऊपर स्मृतिका घटना-बढ़ना निर्भर होता है। उत्कट पीडाको अवस्थामें किसी किसी विषयकी पूर्वस्मृति एकदम लुप्त हो जाती है,
और कभी कभी बहुत दिनोंकी भूली हुई बात अत्यन्त स्पष्ट रूपसे स्मरण हो आती है । साधारणतः बुढ़ापेमें स्मृतिशक्ति घटती देखी जाती है।
जड़वादी लोग अपने मतका समर्थन करनेके लिए पीछे कहे हुए कारण पर विशेष निर्भर करते हैं। बात भी सोचनेके लायक जरूर है । आत्मा अगर देहसे अलग है तो देहकी घटतीके साथ ही आत्माकी स्मृतिशक्तिका हास क्यों होता है ? इसके उत्तरमें इतना ही कहा जा सकता है कि आत्मा देहसे अलग अवश्य है, लेकिन जब तक देहयुक्त है तबतक वह देहकी अवस्थाओंमें जड़ित है, अतएव अपने काममें देहसे सहायता या बाधा पाता है।
स्मृतिकी सहायताके लिए तरह तरहके कौशल निकाले गये हैं। जैसे, संक्षेपमें सूत्रोंकी रचना और उनके द्वारा शास्त्र सीखना। ये विषय बहुत विस्तृत हैं, और इसी कारण यहाँ इनकी आलोचनाके लिए स्थान नहीं है।
प्रत्यक्षके द्वारा बहिर्जगत्का ज्ञान प्राप्त होता है । स्मृति जो है वह पूर्वलब्ध ज्ञान फिर ला देती है । कल्पना जो है वह पूर्वलब्ध ज्ञानको इच्छानुसार रूपान्तरित करके ज्ञातांके सामने उपस्थित करती है। वह रूपान्तर अनेक प्रकारका होता है, अनेक प्रयोजनों और उद्देशोंसे उसकी कल्पना होती है। कभी आनन्दके उद्भव और नीतिशिक्षाके लिए कल्पना जो है वह पूर्व परि