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ज्ञेय ।
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दूसरा अध्याय ]
भी नहीं कर सकते । इसके बाहर और देश नहीं है, या इस कालके बाद और काल नहीं है, अथवा इस कारणका और कारण नहीं है—यह कभी नहीं कहा जा सकता, कहने पर भी आकांक्षाकी निवृत्ति नहीं होती । अथच इनकी अनन्तपूर्णताको भी अपने ज्ञानगम्य करनेमें हम असमर्थ हैं । इस जगह पर विश्वास हीं हमारे लिए अवलंबन है, और जो अनन्तदेशव्यापी, अनन्तकालस्थायी और सब कारणोंका आदिकारण है और जड़चैतन्यमय समस्त जगत् जिसकी विराट्मूर्ति है, वह ब्रह्म ही हमारा चरम और परम ज्ञेय हैयह विश्वास ही हमारी ज्ञानपिपासाको बुझानेका एकमात्र उपाय है । (2 ज्ञेयके सम्बन्ध में और दो बातें हैं, जिनका सम्बन्ध अन्तर्जगत् और बहिजगत् दोनोंसे है । एक त्रिगुणतत्त्व और दूसरी ज्ञेय यां पदार्थका प्रकारनिर्णय |
त्रिगुणतत्त्व अर्थात् रजोगुण सतोगुण और तमोगुण, इन तीनों गुणों की आलोचना या उल्लेख पाश्चात्य दर्शनों में नहीं देख पड़ता । किन्तु साङ्ख्य दर्शनके मत में प्रकृति त्रिगुणात्मिका है, और इन्हीं तीनों गुणोंकी विषमतासे जगत् की सृष्टिक्रियाका सम्पादन होता है ( १ ) । इसके सिवा वेदान्त दर्शनमें इसी बातका जहाँपर प्रतिवाद किया गया है वहाँपर इन तीनों गुणों का उल्लेख है ( २ ) । उन सब विषयोंकी आलोचना यहाँपर अनावश्यक है । तो भी युक्ति के अनुसार देखने पर जहाँतक समझ पड़ता है, उससे रजोगुण, सतोगुण, तमोगुण, इन तीनों गुणोंको क्रिया, ज्ञान और अज्ञानका बोध करनेवाले गुण मान लिया जा सकता है, अथवा सृष्टि, स्थिति और विनाश जगत्के इन त्रिविध कार्योंका कारण जो शक्ति है उसके गुण स्वीकार कर लिया जा सकता है। ये दोनों अर्थ एकदम असंबद्ध या बेमेल भी नहीं हैं । शास्त्रमें यही प्रसिद्ध है कि रजोगुणसे सृष्टि, सतोगुणसे स्थिति और तमोगुणसे विनाश, तीनों गुणोंसे जगत्के ये तीनों कार्य होते हैं। सृष्टि एक क्रिया है । जो सृष्ट हुआ वह पहले प्रकट नहीं था, पीछे प्रकट हुआ, इसीलिए उसकी स्थिति है -- ज्ञानके प्रकाशमें उसका अवस्थान है । और विनाश फिर अप्रकट हो जाना, अर्थात् अज्ञानके अन्धकारमें मग्न हो जाना । प्रायः सभी ज्ञेय पदार्थोंकी अवस्थाके सृष्टि-स्थिति- विनाश ये तीन क्रम हैं । रजः, सत्व, तमः ये तीनों गुण उसी क्रमके ज्ञापक हैं ।
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(१) सांख्यदर्शन, १ - ६१ देखो । (२) शांकरभाष्य, १।४। ८-१० देखो ।