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पाँचवाँ अध्याय ]
राजनीतिसिद्ध कर्म ।
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अतएव प्रजाके स्वास्थ्यकी रक्षाका समुचित प्रबन्ध करना सब तरहसे राजाका आवश्यक कर्तव्य है। यह सच है कि सभीको खुद अपने अपने स्वास्थ्यकी रक्षाके लिए चेष्टा करनी चाहिए । स्वाथ्यकर रहनेका स्थान और पुष्टिदायक खानेकी चीजोंके विषयमें प्रजाको आप ही अपना काम करना चाहिए। यह काम राजा नहीं कर सकता । किन्तु स्वास्थ्यरक्षाके लिए और भी ऐसे अनेक कार्य हैं, जिन्हें प्रजा खुद नहीं कर सकती, और जो राजाकी सहायताके बिना संपन्न नहीं होसकते । जैसे-नदीके भीतर मिट्टी भर जानेसे जलका प्रवाह रुंध जाय, अथवा देशका जल बाहर निकलनेकी राह बंद हो जाय और उससे वह वहुविस्तृत देश अस्वास्थ्यकर हो उढ़ें, या रोजगारी लोग लाभसे लोभके खानेपीनेकी चीजों में छिपाकर अनिष्टकर चीजोंका मेल करने लगे, तो ऐसी अवस्थाओंमें राजाकी सहायताके बिना उक्त अनिष्टोंको रोक सकना असंभव हुआ करता है।
एकस्थानसे अन्य स्थानमें जाने आनेका सुभीता करना। राज्यके एक स्थानसे अन्य स्थानमें लोगोंके जाने-आनेकी और चीजें भेजने की सुविधाके लिए अच्छी पक्की सड़कें, पुल, घाट, बंदरगाह आदि बनवाना भी राजाका एक कर्तव्य है । इन कार्योंको प्रजा भी कर सकती है। परन्तु इनमें अधिक धनके खर्च की जरूरत होनेके कारण जब तक बहुसंख्यक प्रजा मिलकर काम न करे तब तक उसके द्वारा ये काम नहीं हो सकते। इस समय प्रजावर्ग एकत्र होकर बहुतसी रेलगाड़ीकी राहें बनारहे और चलारहे हैं। लेकिन उसमें भी राजाकी सहायता आवश्यक है। एक तो उस मार्गकी भूमिपर अधिकार करनेके लिए, और दूसरे इस लिए कि लोग बेखटके निरापद होकर उस मार्गमें यात्रा कर सकें, राजाकी सहायता चाहिए।
प्रजाकी शिक्षाका प्रबन्ध । प्रजावर्गकी सुशिक्षाका प्रबन्ध करना राजाका और एक विशेष कर्तव्य कर्म है । कहाँ तक प्रजाको शिक्षा देनेका प्रबन्ध करना राजाका कर्तव्य है, इस बारेमें मतभेद है। बहुतलोग कहते हैं कि प्रजा जिसमें बिल्कुल निरक्षर न रहे ऐसी शिक्षा, अर्थात् केवल लिख-पढ़ सकने भर की शिक्षा, देना ही राजाके लिए यथेष्ट है, किन्तु वह शिक्षा प्रजाको मुफ्त मिलनी चाहिए। किन्तु