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शान और कर्म।
[ द्वितीय भाग
प्रथम सृष्टिकी तरह, इतिहास सृष्टिके पहले हुई है। अतएव इतिहास इस विषय की आलोचनामें विशेष सहायता नहीं कर सकता । लेकिन हाँ, साहित्य और प्राचीन रीति-नीति, जिनकी उत्पत्ति इतिहासके पहले हुई है, उनमें राजाप्रजाके सम्बन्धकी उत्पत्तिके जो निदर्शन पाये जाते हैं, उनका संकलन करके. पण्डितोंने अनेक तत्त्वोंका निर्णय किया है (१)। यहाँपर विस्तारके साथ उना सब बातोंके लिखनेका प्रयोजन नहीं है। संक्षेपमें इतना कहना ही यथेष्ट होगा कि प्राचीन भारतमें (२) और ग्रीसमें (३) यह विश्वास प्रचलित था कि राजा और प्रजाके सम्बन्धको ईश्वरने स्थापित किया है, और राजा जो है वह पृथ्वीपर ईश्वरका प्रतिनिधि है। मिश्र और पारसीक अर्थात् ईरान देशके सम्बन्धमें भी यही बात कही जा सकती है ( ४ )।
पुरातत्त्वके अनुसन्धानकी बात छोड़ दीजिए, ऐतिहासिक कालमें भिन्न भिन्न देशोंमें राजा-प्रजाका सम्बन्ध किस तरह उत्पन्न हुआ है-इसका अनुशीलन करनेसे भी देखा जाता है कि यह सम्बन्ध अनेक दशोंमें अनेक कारमोंसे अनेक रूप रखकर धीरे धीरे प्रकट हुआ है। इसका सूक्ष्म विवरण बहुत विस्तृत ह । स्थूलरूपसे केवल यही कहा जा सकता है कि प्रधान प्रधान देशोंका वर्तमान राजा और प्रजाका सम्बन्ध ( अर्थात शासनप्रणाली,) कहीं विना विप्लवके पूर्वप्रणालीका संशोधन करके, कहीं राष्ट्रविप्लवपूर्वक पूर्वप्रणालीका परिवर्तन करके, कहीं युद्ध में पराजय या सन्धिके फलसे पूर्व राजतन्त्रकी जगह नवीन राजतन्त्रका स्थापन करके, उत्पन्न हुआ है । शान्त भावसे संशोधन, विप्लवके द्वारा परिवर्तन, और पराजयमें नवीन राजतन्त्रका स्थापन, वर्तमान कालके राजा-प्रजा-सम्बन्धकी उत्पत्ति अथवा निवृत्तिके ये ही तीन तरहके कारण हैं।
जगतमें जो कुछ है, सब परिवर्तनशील है, कुछ भी स्थिर नहीं है । उस परिवर्तनकी गति प्रायः उन्नतिकी ओर ही होती है। हाँ, कभी कभी वर्त.
(9) Maine's Early History of Institutions, Lectures XII, XIII, और Bluntschli's Thory of The State Bk. I, Ch, III,देखो।
(२) मनुसंहिता अ० ७ श्लोक ३-५ देखो। (३ ) Grote's History of Greece, Pt. I, Ch. XX. देखो। (४) Bluntschli's Theory of The State, Bk. VI,Ch.VI. देखो।