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ज्ञान और कर्म ।
[ द्वितीय भाग
इस
सम्बन्ध में मुकदमें में दोनों पक्ष ( फरीकैन ) कुछ अनुचित व्यवहार करते हैं । बहुतोंकी इच्छा होती है कि मुकदमें में अदालत के सब अच्छे antoint अपनी ही तरफ रख लें, कमसे कम अपने विरोधीके पक्षमें जानेसे उन्हें रोक रक्खें । ऐसी जगह, जिन वकीलोंके बारेमें यह प्रसिद्ध है कि वे पक्षपरिवर्तन नहीं करते, उन्हें लोग मुकदमें के किसी साधारण काममें लगाकर समझते हैं कि उन्हें तो अटका लिया गया, अब दूसरे वकीलको अपने मुकदमे में रख लेना चाहिए । अतएव वह अच्छा वकील, जो साधारण काम देकर अटका लिया गया है, अगर दूसरे पक्षमें जाना नामंजूर करेगा तो उसकी अवश्य आर्थिक हानि होगी । किन्तु इसके लिए उसे विचलित न होना चाहिए। इस तरहके ऊँचे दर्जेकै रोजगारमें कुछ आर्थिक हानि बहुतही तुच्छ बात है ।
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तीसरे प्रश्नका सहज उत्तर यह है कि एक समय में कई मुकदमें होनेकी संभावना हो तो वकीलका कर्तव्य सभी मुकदमोंके लिए तैयार रहना है । और जो मुकदमा सबसे पहले शुरू हो, उसीमें उसे उपस्थित होना चाहिए। तब उसे कोई दोष नहीं दे सकता । जिस अदालत में एकसे अधिक विचारक हैं, और एक समय में उनकी अलग बैठक होती है, उस अदालत में अवश्यही एक समयमें एकसे अधिक मुकदमोंकी सुनवाई होगी, और ऐसी हाल में आगे कोई यह भी नहीं कह सकता कि कौन मुकदमा कब शुरू होगा । अतएव उस तरहकी अदालतके वकील लोग जब किसी मुकदमे में नियुक्त होते हैं, तब उन्हें नियुक्त करनेवाला अवश्य इसी विश्वाससे काम करता है कि वह वकील उसके मुकदमें में उपस्थित होनेके लिए यथासाध्य चेष्टा करेगा, किन्तु एकही समय में एकसे अधिक जगहमें किसी तरह उपस्थित नहीं हो सकेगा, और जो मुकदमा पहले शुरू होगा उसीमें उपस्थितः होनेके लिए वह बाध्य होगा ।
कभी कभी ऐसा होता है कि किसी वकीलके दो मुकदमें संभवतः प्रायः एकही समयमें शुरू होंगे, और उनमें जो आगे शुरू होगा उसमें उस वकीलका एक योग्य सहकारी भी है, और वह मुकदमा भी सहज है, लेकिन जो मुकदमा कुछ देर बाद शुरू होगा, उसमें उसका कोई उपयुक्त सहकारी भी नहीं है, और वह मुकदमा भी कठिन या जटिल है । ऐसी जगह में उस दूसरे मुकदमे में उपस्थित होनाही उस वकीलका कर्तव्य जान पड़ता है।