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ज्ञान और कर्म ।
[ द्वितीय भाग
साधारणकी समझमें आने लायक बनाये जा सके वहाँ तक वैसे ही बनाये जायें। और ऐसा कोई काम न किया जाय जिसके ऊपर सन्देहकी छाया भी पड़ सके। ___ अर्थानुशीलन समितिकी नीतिकी बात कहनेमें धनी और मजदूरोका सम्बन्ध, मजदूरोंकी हड़ताल, धनी लोगोंका एकहत्था ( एकहीके हाथमें रहनेवाला) व्यवसाय, वकील-बैरिस्टरोंके संप्रदायके नियम और चिकित्सकसंप्रदायके नियम, इन कईएक विषयोंकी कुछ आलोचना करना आवश्यक है।
धनी और मजदूरोंका सम्बन्ध । ___ स्वार्थपरता मनुष्यकी एक स्वभावसिद्ध प्रवृत्ति है । आत्मरक्षाके लिए उसका प्रयोजन है। लेकिन संयत न होनेसे, उससे, आत्मरक्षा न होकर, उलटा ही फल (आत्मविनाश ) होता है। जिस स्वार्थके लिए लोग अधिक उद्विग्न होते हैं, उसका अन्यायरूपसे पीछा करनेमें उसी स्वार्थकी हानि होती है। संसारके बाजारमें सभी पूरा लाभ चाहते हैं । किन्तु एकका अनुचित लाभ अन्यकी अन्यायरूपसे क्षति किये बिना हो नहीं सकता । कारण, द्रव्य और उसके मूल्यका प्रायः सर्वत्र ही एक तरहसे निर्दिष्ट सम्बन्ध है। खरीदनेवाला अगर चीजको उससे कम मूल्यमें लेने जायगा, या बेचनेवाला उससे अधिक मूल्य माँगेगा, तो दोनोंमेंसे एक पक्षको अवश्य ही क्षतिग्रस्त होना पड़ेगा। धनी कम मूल्यमें मेहनत खरीदना चाहता है, और मजदूर अधिक मूल्यमें मेहनत बेचना चाहता है । इस तरह एक पक्षका अन्याय्य लाभ होनेसे दूसरे पक्षकी अनुचित क्षतिका होना अनिवार्य है।
हमारे भोगकी चीजोंमेंसे अधिकांश चीजें ही धनी और मजदूर दोनोंके सहयोगसे उत्पन्न होती हैं। ऐसा बहुत कम जगह देखा जाता है कि एक ही आदमी धनी (पूँजीवाला) और मजदूर दोनों ही हो। और, ऐसे स्थलों में उत्पन्न वस्तुका परिमाण अल्प ही होता है।
धनी और मजदूरोंका विरोध दिन दिन बढ़ता ही जा रहा है । समय समयपर राजा भी उस विरोधको मिटानेके लिए हस्तक्षेप करते हैं। कभी कभी आईनके द्वारा राज्य यह भी निश्चित कर देते हैं कि मजदूर लोग कल कारखानों में कुछ निर्दिष्ट घंटोंसे अधिक काम नहीं करेंगे । यह प्रश्न दूसरा है कि राजाका इस मामलेमें इस तरह हाथ डालना कहाँतक न्यायसं