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ज्ञान और कर्म।
[द्वितीय भाग
मुकाबलेमें भी कम नहीं है । अतएव बंगालकी शारीरिक दुर्बलताका कारण शायद बाल्यविवाह नहीं है। उसके मलेरिया आदि अन्य कारण हैं। इसके अलावा इस देशकी पारिवारिक कुशलता और शान्ति, पाश्चात्य देशोंकी अपेक्षा कम तो है ही नहीं, बल्कि अधिक ही जान पड़ती है। आध्यात्मिक उन्नतिके बारेमें भी यही बात कही जा सकती है। हाँ, वैषयिक उन्नतिमें अवश्य ही यह देश पाश्चात्य देशोंकी अपेक्षा बहुत पिछड़ा हुआ है। किन्तु यह बात निश्चित रूपसे नहीं कही जा सकती कि वह ऐहिक उन्नतिमें न्यूनता बाल्य-विवाहहीका फल है। कारण, उसके अन्य का. रण भी रहना संभवपर जान पड़ता है। इस देश में प्रकृति ( Nature) देवी पूर्वकालसे ही अत्यन्त सदय भावसे लोगोंके लिए थोड़े परिश्रमसे मिलनेवाल अन्न-वस्त्रकी व्यवस्था कर देती थी, और उसने प्रायः लोगोंको अपनी भयानक मूर्ति दिखाकर भीत और उत्कण्ठित नहीं बनाया। इसीसे लोग वैषयिक व्यापारकी अपेक्षा आध्यात्मिक व्यापारकी चिन्तामें अधिकतर डूबकर शान्तिप्रिय हो पड़े । उसी अवस्थामें मध्ययुगके रणकुशल विदेशी लोगोंने आकर इस देशपर अपना राज्याधिकार जमा लिया, लेकिन उधर उन्होंने इस देशके रहनेवालोंकी सामाजिक स्वाधीनता जैसीकी तैसी बनी रहने दी । इसी कारण भारतीयोंकी उस शान्तिप्रियता और आध्यात्मिक विचारशीलताने धीरे धीरे आलस्यका रूप रख लिया । सुतरां प्रकृति देवीकी दुलारी सन्तान होनेसे ही हम कुछ-कुछ अकर्मण्य हो पड़े हैं। उधर प्रकृतिने वैसे सदयभावसे जिनका पालन नहीं किया, जिन्हें प्रकृतिने बीच बीच में अपनी भयानक मूर्ति दिखलाई, जिन्हें अन्न-वस्त्रके लिए कठिन परिश्रम करना पड़ा, जिन्हें प्राकृतिक विप्लवसे बचनेके लिए व्यस्त रहना पड़ा-आत्मरक्षाके लिए निकटवर्ती जातियोंके साथ संग्राम करनेके वास्ते तैयार रहना पड़ा, वे अवश्य ही क्रमशः अधिकतर रणनिपुण और कर्मकुशल हो उठे, और इस समय वैषयिक उन्नतिमें बहुत आगे बढ़े हुए हैं।
विवाहकालंके बारे में स्थूल सिद्धान्त । वह चाहे जो हो, देख पड़ता है कि बाल्यविवाहके अर्थात् उल्लिखित प्रकारके थोड़ी अवस्थाके विवाहके प्रतिकूल जैसे अनेक युक्तियाँ हैं, वैसे ही उसके