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________________ १७८ शान और कर्म। भाग इस शिक्षाको याद रखकर, जो भ्रम हो गये हैं उनका संशोधन करके चलना ही हमारा इस समय कर्तव्य है। किन्तु तो भी कहता हूँ कि इस भ्रमका संशोधन करनेमें हम और भी गुरुतर किसी भ्रममें न पड़ जायँ और उस चरम लक्ष्यको न भूले-इसका हमें ख्याल रहे । जो लोग उस चरम लक्ष्यको भूलकर इस लोकके सुख और स्वच्छन्दताको ही जीवनका परम लक्ष्य समझते हैं, वे समृद्धिशाली हो सकते हैं, किन्तु उनकी असीम भोगलालसासे उत्पन्न अशान्ति, उनकी असंयत स्वार्थपरताके कारण निरन्तर कलह और परस्पर भयानक अनिष्ट चेष्टाके ऊपर दृष्टि डालनेसे वे कभी सुखी नहीं कहे जा सकते।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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