SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८ ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग ज्ञानलाभकी आकांक्षा रखता हूँ, और साधारण पाठकोंकी ओरसे ग्रन्थके सम्बन्धमें जो बातें कहनी हैं उन्हें प्रकाशित करनेसे सर्वसाधारणका उपकार हो सकता है-इसी आशासे मैं इस दुस्साहसके कार्य में प्रवृत्त होता हूँ। १ पुस्तकका आकार । सभी पुस्तकोंका आकार यथासंभव छोटा होना चाहिए, अर्थात् पृष्ठसंख्या थोड़ी होनी चाहिए। सभी पाठकोंको समय या अवकाश कम होता है और अधिकांश पाठकोंके पास बड़ी पुस्तक खरीदनेके लिए यथेष्ट धन नहीं होता । इस कारण बड़े आकारकी पुस्तकको खरीदना या पढ़ना प्रायः सभीके लिए सुविधाजनक नहीं होता। बड़ी पुस्तककी रचना करना ग्रन्थकारके लिए भी सुविधाजनक नहीं होता । कारण, बड़ी पुस्तक लिखनेमें अधिक समय लगनेके सिवा उसे छपानेके लिए भी बहुत धनकी जरूरत होती है। फिर जो प्रयोजनके बिना भी बड़े आकारकी पुस्तकें लिखी जाती हैं, उसका भी कारण है। पहले तो प्रयोजनकी सब बातें विशदभावसे किन्तु संक्षेपमें कहना बहुत ही परिश्रम-साध्य होता है। बस इसीसे सहज ही ग्रन्थका कलेवर बढ़ जाता है। दूसरे, हम इतना वृथाका अभिमान रखते हैं कि बिना सोचे भी अनेक समय बड़ी चीजका आदर करते हैं, इसीसे क्या ग्रन्थकार आर क्या पाठक सभी सहज ही बड़ी पुस्तकका आदर करते हैं। पहले जिस समयमें छापनेकी मेशीन नहीं निकली थी, पुस्तकें हाथसे लिखी जाती थीं, और वह लिखना स्वभावसे ही कष्टकर होता था, उस समय वह कष्ट कम करनेके लिए, और पाठकोंको ग्रन्थ स्मरण रखनेमें सुभीता हो इसलिए भी, इस देशमें अनेक ग्रन्थ सूत्रोंके रूपमें, अर्थात् अत्यन्त संक्षिप्त वाक्योंमें, रचे जाते थे। सूत्रोंका लक्षण यह लिखा है स्वल्पाक्षरमसन्दिग्धं सारवद्विश्वतोमुखम् । अस्तोभमनवा च सूत्रं सूत्रविदो विदुः॥ अर्थात् “ सूत्रज्ञ लोगोंने सूत्रके लक्षण ये बताये हैं कि जिसमें थोड़े अक्षर हों, जो असन्दिग्ध हो, सारयुक्त हो, सब ओरकी दृष्टिसे युक्त हो, वृथाशब्दोंसे शून्य और निर्दोष हो, वही सूत्र है।" __ स्वल्प अक्षर हों पर असन्दिग्ध हो, अर्थात् संक्षिप्त और विशद हो, ये दोनों गुण कुछ परिमाणमें परस्पर-विरोधी हैं; एकके रहनेपर उसके साथ दूसरेका मिलना कठिन है। इन दोनों विरुद्ध गुणोंको एकत्र करना भी संसा
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy