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ज्ञान और कर्म ।
[ प्रथम भाग
शब्दका उच्चारण करना हमें अभ्यस्त होनेके कारण उसे हम जितना सहज समझते हैं, बच्चे के लिए वह उतना सहज नहीं होता । बच्चोंको शिक्षा देनेके समय यह बात याद रखकर शिक्षा देनी चाहिए । अगर ऐसा हो तो बच्चोंकों ताड़ना न देकर उनकी उत्सुकता और कौतूहल बढ़ाकर शिक्षा सुखकर बनाई जा सकती है।
लिखनेकी शिक्षाके साथ साथ कुछ रेखागणित सिखाया जाय तो अच्छा हो ।
यह बात सुनकर किसी शिक्षकके मनमें चिन्ता या शिक्षार्थीके मनमें भय न उत्पन्न होना चाहिए। उस चिन्ता और भयको मिटानेके लिए ही मैंने यह बात कही है | रेखागणित जो है वह जटिल रूप धारण करके सहसा उपस्थित होता है, इसी कारण उसका आना चिन्ता और भयका कारण होता है । किन्तु जो वह अपनी सरल मूर्ति से क्रमशः हमारे साथ परिचित हो तो वह भाव नहीं होता । लिखनेकी शिक्षाके समय यदि सीधी रेखा, टेढ़ी रेखा, गोल रेखा, लंबी रेखा, समान्तर रेखा, कोण समकोण ये कई विषय बिना आडम्बर अंकित करके बच्चोंको दिखा दिये जायें, तो वे अच्छी प्रणालीसे लिखनेके नियम और रेखागणितके कुछ स्थूल नियम एक साथ सहज में सीख सकते हैं।
(१०) भाषा और रचनाप्रणालीके सम्बन्धमें कई एक खास बातें हैं, उन्हें इस जगह पर एक बार कह देना उचित है ।
प्राचीन अप्रचलित भाषाएँ सीखनेके लिए सरल काव्य और कुछ व्याकरण पढ़ना ही प्रशस्त उपाय है। वर्तमानमें प्रचलित भाषा सीखनेके लिए उक्त उपायके साथ साथ उसी भाषामें बातचीत करते रहना चाहिए ।
कोई कोई कहते हैं, बच्चा जिस ढंगसे मातृभाषा सीखता है, उसी ढंगसे अर्थात् बातचीतके द्वारा अन्य भाषाकी शिक्षा देना ही भाषा सीखनेका मुख्य उपाय है, और व्याकरण और कोषकी सहायतासे काव्य पढ़ कर भाषा सीखना भाषाशिक्षाका गौण उपाय है। किन्तु जरा सोचकर देखनेसे समझमें आ जायगा कि यह बात बिल्कुल ठीक नहीं है ।
मातृभाषा सीखनेकी जगह स्वयं प्रकृति शिक्षक हो, शिशुका अत्यन्त प्रयोजन शिक्षा के लिए उत्तेजना देनेवाला हो, और विषयकी नवीनता य