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७ - ज्ञानलाभका उद्देश्य |
ज्ञानलाभका उद्देश्य—दुःखनिवृत्ति और सुखवृद्धि — ज्ञानलाभ के फल—–नादकद्रव्यसेवन—–— नई नई आवश्यकताओं को बढ़ाना सुखका कारण नहीं है— ज्ञानवृद्धिके बुरे फल - कुप्रन्थप्रचारउच्छृंखलता और सामाजिक राजनैतिक विप्लव --- जातीययुद्ध - जीवनसंग्रामको जीवनसख्यमें परिणत करना - स्वार्थ और परार्थका सामञ्जस्य - सच्चा स्वार्थ परार्थविरोधी नहीं है— ज्ञान इहलोक और परलोक दोनों ओर दृष्टि रखना बतलाता है
द्वितीयभाग - कर्म ।
उपक्रमणिका ।
१-- कर्त्ताकी स्वतंत्रता ।
कार्य-कारणसम्बन्ध - इस सम्बन्धका मूलतत्त्व - कत्तकी स्वतंत्रता - अस्वतन्त्रतावादके विरुद्ध आपत्ति - इस आपत्तिका खंडन - और एक आपत्ति – उसका खण्डन – अदृष्ट और पुरुषकार — अस्वतंत्रतावादका स्थूल मर्म - चेष्टा या प्रयत्न
'२ - कर्तव्यताका लक्षण ।
कर्तव्यता लक्षणकी आलोचना - सुखवाद - हितवाद — प्रवृत्तिवाद - निवृत्तिवाद - सामञ्जस्यवाद - - न्यायवाद - सहानुभूतिवाद - १९६ न्यायवाद ही युक्तिसिद्ध है— कर्तव्यताके निर्णयका साधारण विधान—संकटस्थल में कर्तव्यताका निर्णय --- क्षमाशीलता कायर - पन नहीं है— कर्तव्यताके गुरुत्वका तारतम्यनिरूपण - पारिवारिक नीतिसिद्ध कर्म ।
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पारिवारिक सम्बन्ध सत्र सम्बन्धोंकी जड़ है— विवाह — उसके अनेक रूप - विवाहसम्बन्ध किस तरहका होना चाहिए - बाल्यविवाहके प्रतिकूल युक्तियाँ - थोड़ी अवस्थाके विवाह के अनुकूल युक्तियाँ - विवाह - काल के बारेमें स्थूलसिद्धान्त-वर और
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