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________________ १२० ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग यह बात याद रखनेसे ही समझमें आ जायगा कि शिक्षाके विषय और पाठ्य पुस्तकोंकी संख्या बढ़ा देनेसे ही शिक्षाकी उन्नति नहीं होती। उच्च परीक्षा या सम्मानलाभार्थ परीक्षामें शिक्षाके विषयों और पाठ्य पुस्तकोंकी संख्या अधिक होना उचित है। किन्तु निम्न परीक्षा या साधारण उपाधिलाभकी परीक्षा में ऐसा नियम करना युक्तिसंगत नहीं है । कारण, उस परीक्षाके लिए स्वभावतः अनेक लोग प्रार्थी होंगे, और चाहे जिस किसी प्रकारसे उस परीक्षामें पास होनेकी चेष्टा करेंगे, और पास भी होंगे। मगर शिक्षाके विषय अधिक होनेसे, उससे उनके लिए यथार्थ ज्ञानलाभ और उत्कर्ष साधनकी संभावना नहीं रहेगी। ____ कोई कोई कह सकते हैं कि मानवजातिकी उन्नतिके लिए क्रमशः शिक्षासे प्राप्त होनेवाले ज्ञानका परिमाण बढ़ाना उचित है । यह बात ठीक है । लेकिन उस परिमाणके बढ़ानेका काम क्रमशः और सावधानीके साथ होना चाहिए, और शिक्षालब्ध ज्ञानके परिमाणकी वृद्धि समाजके अनायासप्राप्त ज्ञानके परिमाणकी वृद्धिके साथ साथ होनी चाहिए। इस बातके ऊपर एक आपत्ति यह हो सकती है कि समाजके अनायासप्राप्त ज्ञानका परिमाण बढ़ानेके लिए कमसे कम उस बढ़े हुए परिमाणके ज्ञानका आकर समाजके भीतर रहना आवश्यक है, और शिक्षालब्ध ज्ञानका परिमाण बढ़ाए बिना वह आकर कहाँसे पाया जायगा ? इस आपत्तिका खण्डन करनेके लिए यह बात कही जा सकती है कि समाजके अनायासलब्ध या साधारण ज्ञानकी वृद्धिके लिए यद्यपि शिक्षासे प्राप्त होनेवाले ज्ञानका परिणाम बढ़ाना आवश्यक है, किन्तु वह आवश्यकता सब शिक्षार्थियोंके लिए नहीं है । कारण, सबसे या अधिकांश शिक्षार्थियोंसे शिक्षाके पूर्ण फलकी आशा नहीं की जा सकती। कुछ एक तीक्ष्णबुद्धिसम्पन्न उच्च शिक्षाभिलाषी विद्यार्थी, उपयुक्त शिक्षा और यथेष्ट उत्साह मिलनेसे ही, स्वदेशीय सरल और सर्वसाधारणके समझने लायक भाषामें रचे गये अपने अपने ग्रंथ और अपने द्वारा संपादित पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित अथवा सभासमितियों में पढ़े गये प्रबन्ध-निबन्ध आदिसे साधारण समाजके नानाविषयक ज्ञानकी उन्नति कर सकते हैं। शिक्षार्थीका ज्ञानलाभ और उसके दैहिक तथा मानसिक उत्कर्षका साधन, इन दोनोंमें जब दूसरे उद्देश्य अर्थात् दैहिक और मानसिक उत्कर्षसाधनकी
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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