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छठा अध्याय। ज्ञान-लाभके उपाय ।
ज्ञानलाभके लिए, ज्ञान चाहनेवालेका अपना यत्न और दूसरेकी सहायता, दोनों आवश्यक हैं । ज्ञानलाभके लिए उपयोगी अन्यकी सहायताको शिक्षा कहते हैं, और उसके लिए उपयोगी यत्नको अनुशीलन कह सकते हैं। ज्ञानलाभके लिए सभी समय अनुशीलनका अत्यन्त प्रयोजन है, और प्रथम अवस्थामें शिक्षाके ऊपर भी बहुत कुछ निर्भर करना पड़ता है। इसीसे पहले शिक्षाके सम्बन्धमें जो कुछ कहना है सो कहा जायगा, और पीछे अनुशीलनकी आलोचना होगी।
शिक्षाके सम्बन्ध विद्वान् बुद्धिमान् लोग बहुत बातें कह गये हैं। मनुसंहिताके दूसरे अध्यायमें शिक्षाके विषयकी अनेक बातें हैं। प्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक प्लेटोके रिपब्लिक (१) नामके ग्रंथमें इस विषयके विविध प्रसंग हैं। सिसरो और झिण्टिलियन् नामक रोमके सुप्रसिद्ध दोनों वक्ताओंने अपने अपने ग्रंथों में शिक्षाके सम्बन्धमें बहुत कुछ आलोचना की है। इंग्लेंड और यूरोपके अन्यान्य देशोंके पण्डितोंने लोकशिक्षाके लिए विविध मतोंका प्रचार किया है, तरह तरहके उपदेश दिये हैं। उन सब बातोंकी समालोचना करना इस छोटेसे ग्रंथका उद्देश्य नहीं है। शिक्षाके विषयकी कई मोटी मोटी बातोंका उल्लेख भर संक्षेपमें यहाँ कर दिया जायगा।
वे कुछ बातें ये हैं। -शिक्षाके विषय । २-शिक्षाकी प्रणाली । ३शिक्षाके सामान।
(१) शिक्षाके विषय । शिक्षाका विषय ब्रह्मसे लेकर तणतक यह सारा जगत् ही है। जब शिक्षाके विषय प्रायः असंख्य ही हैं, तब उनकी आलोचनाके सुभीतेके लिए उन्हें यथासंभव श्रेणीबद्ध करनेकी अत्यन्त आवश्यकता है।
(१) Bk. VII. देखो।