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________________ ९४ ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग कोई कोई कहते हैं, देहयुक्त जीव भी योगबलसे अन्तर्जगत् और बहिर्जगत्के संबंधमें अलौकिक और अतीन्द्रिय ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इस विषयकी विशेष रूपसे प्रमाण-परीक्षा बिना किये निश्चित रूपसे कोई बात नहीं कही जा सकती। मगर हाँ, प्रतिभाशाली विद्वान् जिन सब अत्यन्त अद्भुत पारमार्थिक और वैषयिक निगूढ तत्त्वोंका आविष्कार कर रहे हैं, उन्हें देखनेसे जान पड़ता है, मनोनिवेशके द्वारा मनुष्यके ज्ञानकी सीमा बहुत दूर तक बढ़ सकती है। 'राङ्गेन' किरणकी सहायतासे जब हम काठ या अन्य अस्वच्छ पदार्थकी आड़ रहनेपर भी उसके भीतरकी चीज स्पष्ट देख पाते हैं, तब जान पड़ता हैं, हम अतीन्द्रिय दर्शनशक्ति पागये। किन्तु उसके द्वारा यथार्थमें चक्षुकी दर्शनशक्ति बढ़ना नहीं प्रमाणित होता । वहाँ पर वह देख पाना चक्षुका गुण नहीं, प्रकाश-किरणका गुण है । तो भी, चाहे जिस प्रकार हो, पहले जहाँ मेरी दृष्टि काम नहीं करती थी, वहाँ इस समय मैं देख पारहा हूँ, और उसके द्वारा ज्ञानकी सीमा बढ़ रही है, यह बात अवश्य स्वीकार करनी होगी। इसी तरह विज्ञानचर्चाके द्वारा अनेक ओर ज्ञानकी सीमा बढ़ाई जा सकती है। __ यद्यपि किसी भी विषयके स्वरूप या कारणको हम संपूर्ण रूपसे जान नहीं पाते, किन्तु अनेक विषय किस नियमसे संपन्न होते हैं, इस सम्बन्धमें यथेष्ट ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। ऊपरके माध्याकर्षणसम्बन्धी दृष्टान्तके उपलक्षमें यह बात कही जा चुकी है। माध्याकर्षणका स्वरूप और कारण न जानकर, और लाचारीके मारे जाननेकी चेष्टासे निवृत्त होकर भी, केवल माध्याकर्षणके नियमको जानकर हम सौरजगतके ग्रहों आदिकी गतिके सम्बन्धमें अनेक अद्भुत आश्चर्य तत्त्वोंका निरूपण कर सके हैं । इसीसे आदम्स साहब नेपचून ग्रहका अविष्कार करने में समर्थ हुए हैं। प्रकृतिके नियमोंका निरूपण अनेक जगह स्वरूप और कारणके निर्णयकी अपेक्षा सुसाध्य और सुफल देनेवाला हुआ है, और वैज्ञानिक लोग उसी ओर ज्ञानकी सीमा फैलानेका यत्न कर रहे हैं । तो भी ज्ञानलाभकी आकांक्षा उससे पूर्ण नहीं होती; अतएव मनुष्य किसी भी विषयके स्वरूप और कारण जाननेकी चेष्टासे बाज नहीं आ सकता। दर्शनशास्त्रकी चर्चा भी वैज्ञानिकोंके हास-परिहाससे विलुप्त नहीं हो सकती। (१) Ronrgen.
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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