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ज्ञान और कर्म ।
[प्रथम भाग
नाम विनाश या मृत्यु है। उससे देहका तिरोभाव नहीं होता, निर्जीव होकर देह पड़ी रहती है। ___ जन्मसे मृत्युतक सब जैव क्रियाओंके लिए ताप, विद्युत् आदि विषयक क्रियाओंका, अर्थात् भौतिक क्रियाओंका, और रासायनिक क्रियाओंका प्रयोजन होता है। किन्तु वह यथेष्ट नहीं है। इस सम्बन्धमें मतभेद है। मगर कुछ सोचकर देखनेसे जान पड़ता है, इन सब क्रियाओंके सिवा और किसी एक तरहकी क्रियाका संसर्ग भी है। यह न होता तो मूलमें सजीव-बीज या . जीवदेहांशका प्रयोजन न रहता । परन्तु भौतिक क्रिया और रासायनिक क्रिया जिस शक्तिकी क्रिया हैं, जैवक्रिया भी मूलमें उसी शक्तिकी क्रिया है या और किसी शक्तिकी क्रिया है, इसके उत्तरमें अधिक मतभेद नहीं है। यह स्वीकार करने में कोई विशेष वाधा नहीं देख पड़ती कि ये सभी क्रियाएँ मूलमें एक ही शक्तिकी क्रिया हैं। किन्तु जैवक्रियाकी मूल प्रणाली कैसी है, सो ठीक नहीं कहा जा सकता। केवल इतना ही कहा जा सकता है कि सजीव बीज या जीवदेहांशकी सहायताके बिना वह क्रिया नहीं संपन्न होती (१)। भौतिक और रासायनिक क्रियाओंका मूल जैसे स्थूल जड़ पदार्थ, सूक्ष्म परमाणु और ईथरकी गति है, वैसे ही जैवक्रियाका मूल भी जीवदेहमें स्थित परमाणु और ईथरकी गति है या नहीं, इस प्रश्नका उत्तर सहजमें नहीं दिया जा सकता । कारण, इस विषयकी खोज अत्यन्त दुरूह है, और उसका कारण यह है कि सामान्य जड़में जैसा परमाणु-समावेशका अनुमान किया जाता है, जीवदेहमें वह उसकी अपेक्षा बहुत विचित्र और जटिल है। ___ अज्ञान जैवक्रियाके तत्त्वका अनुसन्धान जब इतना दुरूह है, तब सज्ञान जैव क्रियाके तत्त्वका निर्णय और भी अधिकतर कठिन मामला होगा, इसमें कोई संदेह नहीं। सज्ञान जैव क्रियाके लिए जिन सब देहसञ्चालन आदि शारीरिक क्रियाओंका प्रयोजन है, वे भी अज्ञान जैव क्रियाकी तरह हैं। किन्तु यह बात सहज ही स्वीकार नहीं की जा सकती कि उन सब शारीरिक क्रियाओंको प्रवृत्त करनेवाली जो मानसिक क्रियाएं हैं,वे केवल मस्तिष्कके परमाणु-स्पन्दनके सिवा और कुछ नहीं हैं।
(१) Kirke's Handbook of Physiology, Ch. XXIV और Landois and Stirling's Text Book of Physiology-introduction
देखो।