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________________ जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता ३०५ जो आज भी राजस्थान और गुजरात में गाया तथा खेला जाता है । अधिकांशतः जैन कवियों द्वारा फागु-काव्यों की रचना हुई है, अतः कई फागु शृङ्गार शून्य भी हैं । ये गान्त रस प्रधान हैं। स्थूलिभद्र और नेमिनाथ से सम्बन्धित फागुओं में शृङ्गार के दोनों पक्षों का तथा वासन्तिक सुषमा का स्वाभाविक चित्रण हुआ है। फागु काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए श्री अगरचन्द नाहटा ने लिखा है-'वसन्त ऋतु का प्रधान उत्सव फाल्गुन महीने में होता है। उस समय नरनारी मिलकर एक दूसरे पर अवीर आदि डालते हैं और जल की पिचकारियों से क्रीड़ा करते अर्थात् फागु खेलते हैं। जिनमें वसन्त ऋतु के उल्लास का कुछ वर्णन हो या जो वसन्त ऋतु में गाई जाती हो, ऐसी रचनाओं को फागु संज्ञा दी गई है ।१ निश्चय ही 'फागु' मधुमास की आल्हादकारी गेय रचनाएँ हैं। उनमें शृङ्गार के साथ शम का भी सफल समन्वय हुआ है। ऋतु-वर्णन के साथ नायिका का विरहवर्णन भी आता है। इस प्रकार विप्रलंभ शृङ्गार वर्णन में भी फागु काव्य की रचना होती रही है । नायिका के वियोग के पश्चात् नायक से उसका पुर्नामलन कम उल्लास का सूचक नहीं था। गूर्जर-जैन कवियों ने नेमि-राजुल और स्थूलीभद्र-कोश्या को नायक-नायिका का रूप देकर अनेक फागु काव्यों की रचना की है। ये फागु काव्य रस एवं भापा शैलो की दृष्टि से बड़े महत्व के हैं। इन रचनाओं में जीवन का स्वाभाविक और यथार्थ चित्रण हुआ है । शृङ्गार वर्णन में सीमा का उल्लंघन नहीं हुआ है । इनमें अश्लीलता की ओर जाने वाली लोक रुचि को धर्म, भक्ति एवं ज्ञान की और प्रवाहित करने का पूरा प्रयत्न किया गया है । आलोच्य युगीन जैन-गूर्जर कवियों द्वारा प्रणीत 'फागु' इस प्रकार हैंमालदेव : 'स्थूलिभद्र फाग' । भट्टारक रत्नकोति : 'नेमिनाथ फाग' लक्ष्मीवल्लभ : 'आध्यात्म फाग' । वीरचन्द्र : 'वीर विलास फाग' । समयसुन्दर : 'नेमिनाय फाग'२ तथा 'नेमिनाथ फाग'३ । कनक सोम : 'नेमि फागु'४ । - १. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ५८, अंक ४; सं० २०११, पृ० ४२३ । श्री नाहटा जी का लेख, प्राचीन भाषा काव्यों की विविध संज्ञाएं। २-३. समयसुन्दर कृत कुसुमांजलि, संपा० अगरचन्द नाहटा, पृ० ११७-११६ । ४. प्राचीन फागु संग्रह, डॉ० भोगीलाल सांडेसरा, म० स० विश्वविद्यालय, बड़ीदा।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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