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________________ इस मंगल अवसर पर पूज्य माता-पिता एवं भाई-मानी की मसीम-गृपा का स्मरण भी आवश्यक है, जिनकी वजह से आज मैं इस योग्य बन सका है। सदैव उनक आर्शीवाद प्राप्त होते रहें, यही अभीप्सा है। मित्रों एवं विद्यार्थियों के अपार स्नेह को नी कैसे भूला जा सकता है, जिनके विना यह कार्य पूर्ण होना असंभव ही था। मेरे प्रिय मित्र डा० अरविन्द जोगी, डॉ० रामकुमार गुप्त तथा प्रो० अखिलेदाशाह के महयोग के लिए क्या कहूं? वे तो मेरे अपने ही हैं । इनके प्रति आभार प्रदर्शन भी क्या कर ? गोध-प्रबंध का यह प्रकाशित रूप उन्हीं के प्रयत्नों का फल है। तदुपरांत प्रो० नवनीत माई, प्रो० बाल कृष्ण उपाध्याय, डॉ० रमेशभाई शाह, डॉ. मधुमाई, आचार्या अरविन्दा बहन, डॉ० तारा बहन आदि से भी समय समय पर प्रेरणा-प्रोत्साहन पाता रहा है, अतः सभी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं। मेरे प्रिय विद्यार्थियों में श्री पूनमचन्द स्वामी, श्री चीमनसिंह राठौर, श्री रामखत्री एवं प्रिय विद्यार्थिनी श्रीमती कुमुदमाह, श्रीमती कल्पना पटेल, कु. कल्पना रामी तथा कुछ प्रमोदा सालवी ने मुझे जो सहायता दी है इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस पावन अवसर पर अपनी जीवन संगिनी, सत् धर्म पर सदैव स्थिर रहने वाली धर्म पत्नी श्रीमती सुशीला को कैसे भूला जा सकता हैं ? पर उसके प्रति धन्यवाद प्रगट करना धृष्टता ही होगी। चि० भावना, विनय, नेहा यशेष तथा अनुज प्रो० नरेन्द्र व डॉ० प्रमाकर का स्मरण भी आवश्यक है, क्योंकि वे मेरे शोध कार्य की शीघ्र समाप्ति एवं यशस्वी सफलता के लिए ललायित थे। साथ ही उन सभी ज्ञात-अज्ञात विद्वानों, विचारकों तथा साहित्यकारों के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूं जिनके ग्रन्यों के विना यह शोध कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता था। गुजरात एवं राजस्थान की शोध संस्थाओं एवं उनके संचालको का भी मैं आभारी हैं, जिन्होंने मुझे विशेष अध्ययन की सुविधा तथा पुस्तकों एवं हस्तप्रतों की प्राप्ति में सहायता दी है । अन्त में 'जवाहर पुस्तकालय' मथुरा के संचालक एवं प्रकाशक भाई श्री कुज विहारी पचौरी जी का भी मैं विशेष आभारी हूं, जिन्होंने इस शोध-प्रबन्ध के प्रकाशन की सम्पूर्ण जवाबदारी वहन कर इसे इस रूप में प्रस्तुत कर हार्दिक सौजन्य दिखाया है । अस्तु ! ॐ शांति !! मकर संक्राति, १९७६ हिन्दी विभाग पाटण आर्ट स एण्ड सायंस कॉलेज पाटण (उत्तर गुजरात) -हरीश शुक्ल
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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