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________________ प्रस्तावना। भिन्न भिन्न विभागों में संचार किया (पृ. २५-३५)। उनमें से मंजुश्री दक्षिणापथ की ओर बढा । मंजुश्री के महान पावित्र्य को जानकर सारिपुत्र ने अन्य भिक्खुओं का ध्यान उस ओर आकर्षित किया और उसके पास जाकर तत्तमान शजियों को प्रात करने की इच्छा प्रकट की। मंजुश्री ने उन दस कारणों का विवेचन भिक्खुओं के सामने किया जिनके वलपर उसे वे शक्तियाँ प्राप्त हो गयी थी। मंजुश्री के प्रवचन के फलखरूप भिक्खुओंको समाधि की उपलब्धि हुई और उन्होंने संबुद्धि प्राप्त की। इसके बाद मंजुश्री धन्याकर नामक नगर पहुँच गया । धन्याकर के नागरिक बडी भीड में उसकी परिचर्या के लिए इकट्ठा हुए, जिनमें सार्थवाहपुत्र सुधन भी था। मंजुश्रीने तुरन्त जान लिया कि सुधन बोधिसत्त्व की सर्वज्ञता प्राप्त करने की क्षमता रखता है। एक प्रवचन में उसे उपदेश देकर मंजुश्री नगर छोडकर चलता बना, पर सुधनने लगन से उसका पीछा नहीं छोड़ा। उसका ध्यान खींचने के लिए सुधन ने उसकी स्तुति में एक स्तोत्र गाया और बोधिसत्त्वता का मार्ग बताने की प्रार्थना की । तब मंजुश्री ने उसे समझाया कि बोधिसत्वता कल्याणमित्रों के लाभ पर निर्भर है, और उसे मेघश्री नामक भिक्खु के पास जाने की सलाह दी । उसने बतलाया कि बोधिसत्त्वता प्राप्त करने के इच्छुक को उस ध्येय की तरफ जाने के लिए कैसा आचरण करना चाहिये यह वह मेघश्री से सीख सकता है (पृ. ३६ से ४७)। उसके कहे अनुसार सुधन मेघश्री के पास पहुँच गया और उससे पूछा कि बोधिसत्त्वता किस मार्ग से प्राप्त की जाए और उस उद्देश्यसिद्धि के लिए किस प्रकार का आचरण आवश्यक है (पृ. ३ से. ५०)। इसके उपरान्त का ग्रंथ का हिस्सा जिसमें सुधन के अन्वेषण का वृत्तान्त निहित है, हर कल्याणमित्र के बारे में वह इतना एक-समान है कि उसका सार एक तालिका के रूप में दिया जा सकता है जो इसके साथ जोड दी है:
SR No.010189
Book TitleGandavyuha sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP L Vaidya
PublisherMithila Institute Darbhanga
Publication Year1960
Total Pages491
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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