________________
दिगम्बर जैन साधु
६१२ ]
मुनिश्रेयांससागरजी महाराज को संसंघ बिहार के सभी तीर्थों की वंदना कराते हुए तीर्थराज सम्मेदशिखरजी की वंदना कराई, संघ में २ मुनि ३ माताजी २ क्षुल्लकजी थे। संघ को अजमेर से मधुवन तक लेकर गये ।
सामाजिक कार्यों का श्री गणेश:- श्री दिगम्बर जैनाचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज कें अभिवन्दन ग्रंथ का सम्पादन कर जैन समाज एवं जिनवाणी व साहित्य की अनुपम सेवा की । यह ग्रंथ अपने आप में एक महान् ग्रंथ है जिसने जैन समाज में सर्व श्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया है ।
भा० दि० जैन महासभा के वृहत् इतिहास का भी सम्पादन किया है जिसमें लगभग ६० वर्ष प्राचीन संस्था का लेखा जोखा है । आप वर्तमान में अन्य कई ग्रंथों के प्रकाशन एवं सम्पादन कार्य में लगे हुए हैं !
आपने अभी "साधुओं का जीवन परिचय" ग्रंथ का सम्पादन कार्य किया है, यह भी जैन समाज के लिये एक महान उपलब्धि है । आपकी मौलिक रचनाएं भी हैं जो शीघ्र ही छपकर सामने आ रही हैं। स्यादवाद गंगा के आप सहयोगी सम्पादक भी रहे ।
सामाजिक सम्मान:- आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज के श्रभिवन्दन ग्रंथ विमोचन एवं समर्पण समारोह के शुभ अवसर पर पारसोला ग्राम में ४० हजार जन समुदाय के मध्य में भा० दि० जैन महासभा की ओर से आपको युवारत्न की उपाधि से अलंकृत किया गया। दिल्लो सीताराम बाजार जैन मन्दिर में जैन समाज की ओर से प्रापको धर्म युवारत्न की उपाधि से अलंकृत किया गया ।
सन् ८५ जनवरी
आ० कुन्दकुन्द की तपस्थली पुनोरमल में पू० आ० विजयमति माताजी के सान्निध्य में दक्षिण भारत की जैन समाज ने श्री इन्द्रध्वज महामण्डल आराधना के उपलक्ष में श्रापका अभिनन्दन किया ।
वर्तमान में आप आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज के संघ में रहकर आत्मसाधना
कर रहे हैं ।
वीरेन्द्र गोधा गोधा सदन, जयपुर
: