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दिगम्बर जैन साधु "ललना के पांव पलना में दिखते हैं" इस कथन के अनुसार ही यह जन्म से ही प्रखर बुद्धि के थे । माता पिता ने बालक का नाम हरिप्रसाद रखा और हरि नाम से सम्बोधन करने लगे। ३-४ वर्ष की अवस्था में ही आप तोतली भाषा में महामंत्र, तीर्थंकरों के नाम स्वर व्यंजन आदि का उच्चारण करने लगे थे । अनन्तर बालक हरि ने अपने बाल्यकाल से पूज्य-बाबा गोकुलप्रसादजी कुण्डलपुर श्री पूज्य १०५ क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी की महति कृपा के द्वारा श्री पूज्य पं० मोतीलालजी वर्णी के सान्निध्य में श्री वीर दिगम्बर जैन विद्यालय अतिशय क्षेत्र पपौराजी में प्रथम छात्र रहकर विशारद कक्षा तक अध्ययन किया।
बाल्यकाल में ही आपके पिताजी स्वर्गस्थ हो गये जिससे घर का सम्पूर्ण कार्यभार आपके ऊपर आ गया फिर भी आप अध्ययन कार्य में रत रहे तथा घर पर रहकर ही आपने वैद्य शास्त्री, गणित, ज्योतिष, कविता, सामुद्रिक, धार्मिक शिक्षा-यत्र, मंत्र, तंत्र, प्रतिष्ठा, संगीत आदि में दक्षता प्राप्त की। वैद्यक कार्य तो आपने अपने पूज्य पिताजी से धरोहर के रूप में पाया था।
बालक हरि पं० हरिप्रसाद के रूप में समाज के आगे आये तथा पूज्य प्रतिष्ठाचार्य गुरुवर्य पं० मोतीलालजी वर्णी के साथ आपने प्रतिष्ठा कार्य कराना प्रारम्भ किया। इसी क्रम में आपने रेशंदीगिरि, खटौरा, ऊँचा, केवलारी, छिंदवाड़ा, चांदखेड़ी, अंदेश्वर क्षेत्र इत्यादि स्थानों पर गजरथ महोत्सव पंच कल्याणक प्रतिष्ठा कराई । समाज ने आपको पपौराजी के मेले के शुभावसर पर पू० गणेशप्रसादजी वर्णी एवं पं० मोतीलालजी वर्णी के सान्निध्य में प्रतिष्ठाचार्य पद से विभूषित किया।
बाल ब्रह्मचारी के रूप में रहकर आपने मात्र १५ वर्ष की अवस्था में नैष्ठिक प्रथम-द्वितीय श्रावक प्रतिमा ग्रहण कर विवाह का त्याग कर दिया तथा धार्मिक, सामाजिक, लौकिक, व्यावहारिक आदि कार्य करते हुये जैन समाज से सम्मानित होने पर भी उदासीनता पूर्वक अपना जीवन-यापन करने लगे।
आपने वि० सं० १९६६ माघ कृष्णा १ गुरुवार शुभ मिति में पटना ( सागर ) के जलयात्रा महोत्सव पर १०८ मुनि श्री पद्मसागरजी महाराज के द्वारा सप्तम प्रतिमा के व्रत अंगीकार किये । महाराज श्री ने आपके गुणों को देखकर आपका विद्यासागर नामकरण किया। वि० सं० २०१६ फाल्गुन शुक्ला १ से पंचकल्याणक महोत्सव लोहरदा ( देवास ) में सम्पन्न होना निश्चित किया गया । इसी समय गुरुजी को साथ ले वहाँ पहुंचे और वहाँ फाल्गुन शुक्ला ३ सोमवार के दिन श्री भगवान
नेमिनाथ स्वामी के दीक्षा महोत्सव के साथ ही श्री १०८ आचार्य योगीन्द्रतिलक मुनि शांतिसागरजी - महाराज तथा पं० नाथूलालजी शास्त्री संहिता सूरि प्रतिष्ठाचार्य के सान्निध्य में गुरुजी द्वारा दीक्षा