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________________ ANSWER XJARADASHRAMMESTERNME जो तीर्थकर परम्परा के समुज्ज्वल नक्षत्र हैं, जिनका अद्भुत जीवन अध्यात्म की पवित्र प्रेरणा प्रदान करता है, जिनके नियत विचार भूले भटके जोदन-राहियों का पथ-प्रदर्शन करते हैं, उन्हीं श्रद्धालोक के देवता, प्राचार्य प्रवर दिगम्बर जैनाचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज के कर-कमलों में समर्पित करते हुए मैं अपने आपको धन्य समझ रहा हूं। आचार्यश्री ने जन कल्याण की भावना से हजारों भव्य जीवों को सुमार्ग में लगाया है, आपके माध्यम से जैनागम की निर्मल ज्योति सदा-सदा जलती रहे ऐसी कामना करता हूं। आचार्यश्री के अनन्य अनुराग, आशीर्वाद, अनुकम्पा और प्रौदार्य के कारण ही मुझे लौकिक झंझटों से मुक्त होकर आत्मोत्थान करने वाली उज्ज्वल अभिलापा के अनुसार जैन धर्म और संस्कृति की सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। आपके चरणों में नमोस्तु करते हुए निर्ग्रन्थ गुरुओं के जीवन परिचय की यह ज्योति रूप प्रथम भेट आपके कर-कमलों में सविनय सादर समर्पित है। आश्विन शुक्ला ७ वी०नि० सं० २५११ लूणवां (नागौर) श्रद्धावनत : ० धर्मचन्द्र शास्त्री ज्योतिषाचार्य TRESTER
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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