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दिगम्बर जैन साधु .
परीषह जय:
श्री सम्मेदगिरि की वन्दना कर जव आप कटनी ( म०प्र० ) के पास पहुंचे तो एक ग्रामीण में मधु-मक्खियों के छत्ते में पत्थर दे मारा जिससे मधु-मक्खियां आपकी देह से चिपट गई परन्तु आप अत्यन्त भावना भाते हुए जरा भी विचलित नहीं हुए । अत्यन्त वेदना को सहन करते हुए चलते रहे। कुछ समय बाद आप गिरकर अचेत हो गये। कटनी के श्रावक प्रमुख आपको नगर में ले आये जहां तीन दिन बाद मधु-मक्खियाँ अलग की जा सकीं परन्तु आपने उफ् तक न की। घोर उपसर्ग में भी आपका मन रत्नत्रय की आराधना में लगा रहा।
पूज्य मुनि श्री गुरु पद चिह्नों का अनुगमन करते हुए श्रावकों को सम्यग्दर्शन भावना को दृढ़तम् वना रहे हैं । धर्मवत्सलता का बीज वटवृक्ष का रूप धारण करता रहे और पूज्य श्री अपनी कृपा से श्रावक वर्ग को संसार को असारता का भान कराते रहें, यही प्रार्थना है।
मुनिश्री वर्धमानसागरजी महाराज (दक्षिण) ..
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पू० मुनि श्री का जन्म दक्षिण भारत मद्रास के समीप में हुवा था । आपकी भाषा तेलगू है आप मुनि श्री निर्मलसागरजी से मुनि दीक्षा लेकर आत्म कल्याण के पथ पर चल रहे हैं वर्तमान में आप आचार्य धर्मसागरजी महाराज के संघ में विराज रहे हैं ।
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