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दिगम्बर जैन साधु मुनि श्री आर्यनंदीजी महाराज
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श्री शंकररावजी का जन्म तालुका पेठन नामक ग्राम में हुआ था । आपके पिता श्री लक्ष्मण रावजी । अहमिन्द्र थे एवं माता कृष्णाबाईजी थीं । आपका गोत्र अहमिन्द्र वृषभ था, आप जाति से दि० जैन सेतवाल थे। आपका विवाह श्रीमति पार्वतीदेवी से हुआ जो धार्मिक कार्यों में काफी आगे रहती थी एवं २ प्रतिमा धारण कर रखी थी। आपके एक भाई व दो बहने थीं एवं आपके एक पुत्र व दो पुत्रियां थीं जिनमें से पुत्र का स्वर्गवास हो गया । आप निजाम सरकार के कष्टम आफिस में पेशकार थे। आपकी १९५३ में पेंशन हो जाने के बाद आपका सम्पूर्ण समय धर्मध्यान में जाने लगा।
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आप वैराग्य की ओर बढ़े एवं आपने श्री समन्तभद्रजी आचार्य से कुन्थलगिरि में १३-११-१९५६ को दीक्षा ले ली व आप धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन करने लगे । आप हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी, उर्दू, गुजराती, संस्कृत आदि भाषाओं के ज्ञाता थे । आपके वैराग्य का प्रमुख कारण पूर्वजन्म एवं बचपन के संस्कार एवं संसार की विचित्रता व स्वानुभव था।
आपने दीक्षा लेने के बाद ६० से ६१ तक बाहुबलि कुम्भोज में चातुर्मास किया। सन् ६२ से ६९ तक आप गुरूकुल एलौरा में रहे । आपने एक से अधिक ग्रन्थों का गहन अध्ययन व स्वाध्याय किया। आप स्वभाव से मृदु व अल्पभाषी हैं और विद्वानों के बड़े अनुरागी हैं । आप स्वयं एक सजीव संस्था हैं जो संस्था के माध्यम से देश, धर्म व समाज की सेवा में संलग्न हैं।