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दिगम्बर जैन साधु उम्र में आपने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत की दीक्षा धारण की । २२ वर्ष की आयु में देशभूषणजी महाराज से ७ वी प्रतिमा धारण की । श्रावण शुक्ला पंचमी हस्त नक्षत्र को मुनि आदिसागरजी ने आयिका पद में दीक्षित किया । आपके द्वारा दक्षिण में धर्म का काफी विकास एवं समय समय पर धर्म प्रभावना के कार्य हुए।
क्षुल्लिका चन्द्रमति माताजी
- अक्षय तृतीया (दिनांक १४-५-७५) का वह दिन कोई नहीं भूल सकता जिस दिन से सौ. अनघा चंद्रकांत दोशी पूज्य क्षु० चन्द्रमति माताजी के रूप में दुनियां के सामने आई । आपका जन्म दिनांक १७-४-४४ को वैजापुर में हुआ । आपके पिताजी श्री छगनलालजी गांधी एक अच्छे व्यापारी हैं। आपके माताजी का नाम सौ० सोनुबाई है तथा आपके ३ बहिन तथा ४ भाई हैं। जन्म नाम कु० खीरनमाला तथा पाठशाला
नाम कु० शकुन्तला है । लौकिक शिक्षण में आप वी० ए० ऑनर्स ( Geography ) पास हैं तों H. M. D. S. यह वैद्यकीय उपाधि भी प्राप्त की।
गार्हस्थ्य जीवन.-सन् १९६५ में आपका विवाह डॉ० चन्द्रकान्त गुलाबचन्द दोशी ( वर्तमान में पू० १०८ वीरसागरजी महाराज ) इनके साथ हुआ था। आप रूप लावण्य संपन्न हैं तथा विद्वत्ता, शालीनता भी साथ है । आपकी वृत्ति पतिसेवा परायण तथा समर्पण वृत्ति है।
____ आध्यात्मिक अध्ययन : पति के साथ आपने तत्वार्थसूत्र, सर्वार्थसिद्धि, समयसार, द्रव्य संग्रह, प्रवचनसार इन कठिन से कठिन ग्रन्थों का अध्ययन किया।
विरक्ति:-जिस वेग से आपके पति के हृदय में विरक्ति भाव जागे उसी वेग से आप भी . विरक्ति में कम न थीं। अतः पति के साथ ही साथ दीक्षा लेना स्वाभाविक है।
विशेषत ! आप उपदेश ऐसा देती हैं जो सामान्य जनों के गले में उतरे । आपके उपदेश से अनेक भव्य जीव स्वाध्याय रुचि संपन्न हुए । दीर्घायु तथा आत्मोन्नति की कामना के साथ आदरांजलि समर्पित है।