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दिगम्बर जैन साधु प्राचार्यश्री का जन्म पेमसर ग्राम ( शिवपुरी ) में कार्तिक शु० ६ वि० सं० १९४० की शुभ मिती में श्री हीरालाल जैन पोरवाल के घर में हुआ था । आपकी माता का नाम गेंदाबाई था। माता-पिता ने आपका नाम हजारीलाल रखा । झालरापाटन में आपके चाचा रहते थे। उन्होंने
आपका पालन-पोषन कर "गोद" ले लिया । उस जमाने में शिक्षा का प्रचार कम था अतः आपकी शिक्षा प्रारम्भिक हिन्दी ज्ञान तक सीमित रही । गृहस्थावस्था में कुछ दिन रहने के बाद सं० १९८१ को रात्रि में एक स्वप्न के कारण संसार स्वरूप से विरक्ति हो गयी । बस, सिर्फ गुरू की तलाश थी।
वि० सं० १९८१ आसौज शु० ६ का दिन भाग्योदय का दिन था। इन्दौर में पू० आ० श्री शांतिसागरजी महाराज (छाणी) के पास आपने ऐलक दीक्षा ग्रहण की । आचार्य श्री ने आपको दीक्षा देकर "सूर्यसागर" नाम दिया और आपने सूर्य की तरह चमक कर जग का अज्ञानान्धकार दूर किया । मंगसिर कृ० ११ को गुरू से हाटपीपल्या में उसी वर्ष मुनि पद की भी दीक्षा ग्रहण की। आपकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर समाज. ने आपको 'आचार्य पद' पर प्रतिष्ठित किया । आप निर्भीक वक्ता, जिनधर्म की आचार-परम्परा का प्रचार करने वाले अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी आचार्य थे। जिनके उपकारों से समाज कृतकृत्य है । पू० मुनि श्री गणेशकीतिजी म० आपको अपने गुरुतुल्य मानकर निरंतर मार्गदर्शन प्राप्त करते रहे हैं। जग-उद्धारक ऐसे आचार्यश्री के चरणों में शत-शत वंदन!