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दिगम्बर जैन साधु क्षुल्लक श्री गुणभद्रजी महाराज
सातवीं पास जिन्नाप्पा उमलवाड ग्राम (कोल्हापुर) की सीमा छोड़कर विराग की लोरियां गाने लगा तो दम्पति कल्लाप्पा अक्कुबाई के दिल सहम से गये। गांव-गवई के वातावरण में भला विराग का क्या काम ! माता-पिता का दुलारना-पुचकारना आखिर काम न पाया और जिन्नाप्पा ने जो राह पकड़ी सो थमे ही नहीं। २ दिसम्बर ६८ का दिन शायद जिन्नाप्पा के लिये ही था। बाहुबली विद्यापीठ में जग उद्धारक १०८ मुनि श्री महाबलजी म० का शुभागमन हुआ । अन्धे को दो आंखें मिली । मुनिश्री ने जिन्नाप्पा को अपनी शरण में ले लिया और उसे क्षुल्लक दीक्षा देकर क्षु० गुणभद्र म० के नाम से पुकारा। विनीत शिष्य गुरु चरणों में शास्त्राभ्यास करता हुआ अपने सदूपदेश से दीन संसारियों की भटकती नौका को पार लगा रहा है।
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क्षु० श्री मरिणभद्रसागरजी आपने सन् २२-५-१९२६ में हारुगेरी (वेलगांव ) कर्नाटक में श्री लक्कप्पाजी के गृह में जन्म लिया था । आप ४ भाई ४ बहिन हैं । प्रारंभिक रुचि कृषि करना ही था। आपके ६ पुत्र पुत्रियां हैं । श्री मुनि महाबलजी महाराज के दर्शन एवं प्रवचन से प्रभावित होकर पंचकल्याणक पूजा के समय मुनि श्री महावलजी महाराज से हलिन्गली ( कर्नाटक ) में क्षुल्लक दीक्षा ली। अब तक आपने १२ चातुर्मास किए हैं।
निरन्तर आप पठन पाठन में लिप्त रहते हैं।