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दिगम्बर जैन साधु क्षुल्लक वर्द्धमानसागरजी
बुन्देलखण्ड के ठकुरासों की राजसी ठाट की कहानियां इतिहास के पन्नों में सिमट कर अब स्मृति के दायरे टटोल रही हैं । लगता है औकात की बात पूछना मानो आज भी उसकी शान के खिलाफ हो। हो भी क्यों न, शान ही तो उनकी पान है । हर चौखट से उठती हुई जोश की एक लहर हर पल देखी जा सकती है । पहले यह जोश वैभव के लिये होता था और आज यह वैभव त्याग के लिये है । कथ्य वही है पर तथ्य बदल चुका है । सिमरिया ( ललितपुर ) के श्री खुशालचंद मोदी अपनी पत्नी सहोद्राबाई के साथ इसी बुन्देलखण्ड की भूमि में साधारण व्यवसाय करते हुए श्रावक के व्रत पाल
रहे थे । सं० १९८६ भाद्र शु० ३ को इनके घर एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ जिसका नाम बच्चूलाल रखा गया । साधारण परिवार में जन्में हुए बच्चूलाल में बचपन से ही धर्म प्रचार-प्रसार के प्रति अत्यन्त जोश था और उसका यह जोश सं० २०३२ पौष शु० १४ को आहार सिद्धक्षेत्र पर पू० मुनि श्री नेमसागरजी म० का सान्निध्य पाकर चरम सीमा पर जा पहुंचा । गुरु दर्शन मात्र से जिसके अंतरंग चक्षु खुल जांय भला उसकी पात्रता में भी किसी को संदेह हो सकता है ! मुनि श्री ने भव्यात्मा को संबोधित करते हुए क्षुल्लक दीक्षा प्रदान कर दी तथा आपका नाम वर्द्धमानसागर लोक में प्रसिद्ध किया । गुरु आदेशानुसार आप भी रत्नत्रय चारित्र को निरन्तर वृद्धिंगत करते हुए जिनमार्ग की प्रभावना में लीन हैं। वरौदिया कलां में चातुर्मास करके वहां पाठशाला की स्थापना कराके बालकों को धर्म शिक्षा के प्रति उन्मुख किया जो कि कल के श्रावकों के लिये भित्ति का कार्य कर रही है।