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दिगम्बर जैन साधु
[ ४१३ महा मुनि के साथ हो गये । मुनि महाराज ने इनको धर्म के पठन स्वाध्याय के लिए कहा और थोड़े दिनों में अनेक ग्रन्थों का पठन तथा स्वाध्याय कर लिया। आचार्य महाराज के साथ ही थोड़े दिन वाल ब्रह्मचारी रहकर रामटेक तीर्थ क्षेत्र पर ऐलक दीक्षा ले ली और सम्मेदशिखरजी साथ चले गये । तत्पश्चात् २० वर्ष की अवस्था में श्री कुन्थलगिरि सिद्ध क्षेत्र पर आचार्यश्री से मुनि दीक्षा भी ले ली और मुनि अवस्था में खूब विद्याभ्यास किया। अयोध्या जैसी सुन्दर नगरी में जैन जनता का अभाव होने से वह तीर्थस्थान सूना सा लगता है अतः आचार्य महाराज ने वहां एक गुरुकुल स्थापित कर जैन समाज का बड़ा काम किया है । यह गुरुकुल उन्नति करता जा रहा है। इस तीर्थ को उन्नत बनाने के लिए आचार्यश्री ने ३१ फुट ऊँची श्री आदिनाथ भगवान् की विशाल प्रतिमा सुन्दर बगीचे में स्थापित कराई है । जिससे यह क्षेत्र उत्तर प्रान्त का एक दर्शनीय स्थान बन गया ।
प्रत्येक चातुर्मास में आपके धार्मिक, सामाजिक और नैतिक भाषणों से जनता पर्याप्त मात्रा में प्रभावित है कारण कि आपके भाषण जन साधारण की भाषा में सुन्दर और चित्ताकर्षक, तत्काल हृदय को उल्लासित करने वाले, व्याख्येय विषय को स्फुट करने में सफल, साधक उदाहरणों से प्रोतप्रोत रहते हैं । आपकी अमृतमयी वाणी से जो विषय बोला जाता है वह श्रोताओं के कर्ण विवर द्वारा सीधा हृदय में प्रवेश कर मनःसंताप को शान्त करने में समर्थ होता है। आपके भाषण इतने गम्भीर होते हैं जिन्हें सुनकर जनता मन्त्र मुग्ध हो जाती है । आप लगातार घन्टों बोलते रहते हैं । फिर भी आपको जरा भी थकावट नहीं आती है । यह आपकी सतत् तप साधना का ही माहात्म्य है । प्राचार्यश्री की विद्वत्ता, गम्भीरता, औजस्विता, तपस्तेजस्विता, निरीहिता, निःस्पृहता, दयालुता, कष्ट सहिष्णुता, अनुपम क्षमता आदि अनेक गुणगरिमा, जनता के.आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है ।
आपने बंगाल, बिहार, उड़ीसा, निजाम, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, तमिलनाडू आदि सभी प्रान्तों में धर्म प्रभावना की । अपने युग के आप आलौकिक सन्त हुए हैं। आपने कोथली में भव्य जिनालय का भी निर्माण कराया है।
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