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दिगम्बर जैन साधु क्षुल्लक श्री महावीरकोतिजी महाराज
___ सावलवाडी ( सांगली ) ग्राम के ( पंचम जैन ) पारीसा शान्तप्पा उपाध्ये की सुयोग्य संतान पंडित शांतिनाथ आज क्षु० महावीरकीतिजी म० के रूप में हम श्रावकों पर अनुग्रह बुद्धि से धर्मामृत की वर्षा कर रहे हैं । १५ जुलाई १९०५ को माता रुक्मणी देवी ने धर्म प्रभावक इस ज्योतिपुंज को जन्म देकर मराठों की गौरव गाथा में एक नयी कड़ी को और जोड़ दिया कुल परम्परा से चली आ रही त्याग और तपस्या की धारा शांतप्पा को स्वयमेव विरासत में मिल गई । सिर्फ संयोग का इंतजार था सो वह धन्य घड़ी भी १० अगस्त ६२ को हुपरी ( कोल्हापुर ) में आ० श्री अनन्तकीर्तिजी म. के दर्शन करते ही आ गई । पितृ
वियोग की असामयिक घटना से चित्त वैसे भी संसार से विरक्त हो छटपटा रहा था। प्राचार्य श्री से उद्बोधन प्राप्त कर तुरन्त क्षुल्लक दीक्षा लेकर इस नश्वर संसार के समस्त रिश्तों का मोहजाल भंग कर दिया । विराग की छोटी सी चिनगारी ज्वाला बनकर कर्म शत्रुओं को भस्म करने लगी। निरन्तर स्वाध्याय में तल्लीन रहते हुए आपने अब तक निम्नलिखित स्थानों में चातुर्मास करके श्रावकों को चारित्र मार्ग में स्थिर किया। ( सन् १९६२७४ तक )-हुपरी, पालते, शांतिग्राम, हालोड़ी, शाहपुरी, नांदणी, वस्तवाड, रूई, कुलघटगी, कोंगनोली, शिमोगा, करनूर, करुंदवाड, जुगुवचंदूर, चिकोडी आदि ।
जैन साहित्य निर्माण, पंचकल्याणक पूजा-प्रतिष्ठा आदि कार्यों द्वारा जिनशासन की प्रभावना कर रहे हैं।