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[ ३६ ] धर्मभूषण सेठ रिषभचन्दजी पहाड़िया की सुपुत्री श्रीमती कमला बाई के साथ आपका शुभ विवाह संस्कार होगया । आप व्यवसाय में लग गये-पति पत्नी दोनों पूर्ण धार्मिक वृत्ति के होने के कारण तीर्थ वंदना, मुनि संघों के दर्शन और जगह २ दान आदि में भी आपका विशेष उत्साह रहा । आपने बिहार में बहुत विशाल स्तर पर कोयला उद्योग प्रारंभ किया जो अब तक पूर्ण अभिवृद्धि के साथ चल रहा है धार्मिक भावनाओं से ओत प्रोत इस दम्पत्ति ने सादा जीवन उच्च विचार वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए सदैव निरभिमानता के साथ धार्मिक कार्य किये हैं और कर रहे हैं आपको श्रमण संघों का पूरा २ आशीर्वाद रहा है । धर्म दिवाकर १०५ स्व० क्षुल्लक रत्न श्री सिद्धसागरजी महाराज के आप अनन्य भक्त रहे हैं उन्हीं की सद् प्रेरणा से श्री बाहुवली सहस्राब्दि समारोह पर श्री शांतिकुमारजी बड़जात्या और श्री उम्मेदमलजी पांड्या ( शांति रोडवेज ) के परामर्श और सहयोग से एक हजार यात्रियों का २ माह का यात्रा संघ पूज्य क्षुल्लकजी महाराज के सानिध्य में पूर्ण सफलता के साथ निकाला जिसमें समस्त यात्रियों के मार्ग व्यय भोजनादि को सारी व्यवस्था उक्त श्रीमानों की ओर से थी-इस शताब्दी का यह एक ऐतिहासिक यात्रा संघ था इसमें भी जगह २ श्री पूनमचन्दजी ने यथेष्ट दान दिया और इसीप्रकार श्री शांतिकुमारजी कामदार तथा श्री उम्मेदमलजी पांड्या का योगदान रहा । श्रीमान् श्रेष्ठिवर श्री पूनमचन्दजी ने अपनी चंचला लक्ष्मी का धार्मिक कार्यों में अधिक से अधिक उपयोग किया है और कर रहे हैं। श्री दि० जैन अतिशय क्षेत्र लणवां में तो आप तन मन धन से पूरा २ सहयोग कर ही रहे हैं साथ ही आपने श्री दि० जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी स्थित प्रादर्श महिला विद्यालय के अन्तर्गत मंदिर में काच का कलात्मक कार्य इतना सुन्दर कराया है जो दर्शनीय है । इसीप्रकार श्री दि० जैन अतिशय क्षेत्र तिजारा, पदमपुरा, सीकर देवीपुरा में, और अनेक क्षेत्रों में आपने कई कार्य कराये हैं श्री दि० जैन अतिशय क्षेत्र लूणवां में दि० १५-११-८० से २७-११-८० तक पूज्य क्षुल्लक श्री सिद्धसागरजी महाराज के सानिध्य में श्री सिद्धचक्र विधान का, विशाल आयोजन कर उसी मांगलिक शुभावसर पर पीछे की दोनों वेदियों की वेदी प्रतिष्ठा रथयात्रादि महान कार्य कराये और भी अनेक स्थानों पर बड़े २ विधानादि आप कराते रहे हैं कई पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में आपने सौधर्मेन्द्रादि पदों को भी प्राप्त किया है। आपके चारों भाई श्री ताराचन्दजी, प्रकाशचन्दजी, धरमचन्दजी, कैलाशचन्दजी और पूज्य रत्न श्री हंसराजजी, गजराजजी, दिलीपकुमारजी, प्रदीपकुमारजी, और ललितकुमारजी एवं दो पुत्रियां सौ. अंजनाकुमारी और सौ० मंजूकुमारी भी प्रापके विचारानुसार धर्मानुरागी हैं ।
जिसप्रकार आपकी धार्मिक भावनाएँ हैं उसीप्रकार आपका साहित्य प्रकाशन में भी पूरा २ योगदान रहता है । आपने-मानव मार्गदर्शन के तृतीय चतुर्थ एवं स्वास्थ्य बोधामृत मादि अनेक साहित्य प्रकाशन में योग दान दिया है।