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दिगम्बर जैन साधु
क्षु० धर्मसागरजी महाराज वि० सं० १९६४ में आपका जन्म सीरम जि० मुजफ्फरनगर (उ० प्र०) में श्री न्यादरमलजी की धर्मपत्नी श्री भागीरथीदेवी की कुक्षी से हुआ था। आपका पूर्व नाम उग्रसेनजी था। आप अग्रवाल जाति में उत्पन्न हुए थे । आपकी लौकिक शिक्षा मिडिल तथा उर्दू चार कक्षा तक हुई । प्राचार्य विमलसागरजी से दूसरी प्रतिमा बडीत में ली। सं० २०१६ में तीर्थराज सम्मेदशिखरजी में आपने क्षुल्लक दीक्षा ली। बचपन से साधु बनने की भावना थी वह मधुवन सम्मेदशिखर पर जाकर पूर्ण हुई। गृहस्थ अवस्था में सैनिक रहे, सिंहापुर युद्ध के मैदान में आपने भाग लिया था आपको सरकार की ओर से बड़ा ही सम्मान मिला । मुजफ्फर नगर जिले में आपका अपूर्व प्रभाव था। अन्त में जो भावना थी वह पूर्ण कर समाधि को प्राप्त हुए । धन्य है आपकी वीरता।
क्षुल्लकश्री जिनेन्द्रवर्णीजी (सिद्धान्तसागरजी)
श्री जिनेन्द्रवर्णीजी का जन्म सन् १९२१ में पानीपत के सुविख्यात विद्वान श्री जयभगवानजी जैन एडवोकेट के यहां हुआ। आपकी बुद्धि बड़ी कुशाग्र थी। परन्तु उन दिनों पानीपत में उच्च शिक्षा का कोई प्रबन्ध न था। १९३७ में मैट्रिक करने के पश्चात वे अध्ययन के लिए देहली चले गए, परन्तु वहां की जलवायु अनुकूल न पड़ने से क्षय रोग से गस्त हो गये । दोनों फेफड़े खराब हो गये और उन्हें १९३९ में चिकित्सार्थ मिरज भेज दिया गया। यद्यपि बचने की कोई आशा न थी परन्तु अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति से आपने उस रोग को परास्त कर दिया। केवल २० महीने में ४
आप्रेशन कराकर पूर्ण स्वास्थ्य लाभ किया। डाक्टरों के आग्रह करने पर भी मांस व अण्डे का प्रयोग करना स्वीकार न किया, यहां तक कि इसी आशंका से सैनेटोरियम की औषधि का सेवन भी नहीं किया।
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