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दिगम्बर जैन साधु
[ ३४७ का पूर्ण निर्वाह करते हुए समस्त विश्व में न केवल जैन धर्म को विश्व धर्म की मान्यता दिलाई है अपितु जन-जन में व्याप्त भ्रान्तियों को बड़ी ही सहृदयता से दूरकर अनेकानेक प्राणियों को आत्म कल्याण के सन्मार्ग में लगाया है। ऐसे विद्वान तपस्वी आचार्य रत्न श्री चिरायु हों, यही मंगल कामना है।
मुनिश्री कन्थसागरजी महाराज
श्री १०८ मुनि कुन्थसागरजी का गृहस्थावस्था का नाम कन्हैयालालजी था। आपका जन्म ज्येष्ठ सुदी तेरस विक्रम संवत् २००३ में बड़ा बाढरहा स्थान पर हुआ था। आपके पिता श्री. रेवाचन्द्रजी हैं व माता श्री सोहनवाई हैं । आप नरसिंहपुरा जाति के भूषण हैं व लोलावत गोत्रज हैं । आपकी लौकिक तथा धार्मिक शिक्षा साधारण हुई । आपने विवाह नहीं किया। आप बालब्रह्मचारी ही रहे । आपने पहले दुकान पर नौकरी भी की। आपके परिवार में एक भाई व तीन बहिनें हैं।
__ धार्मिक प्रेम होने के कारण आपने श्री १०८ मुनि सन्मतिसागरजी से दूसरी प्रतिमा के व्रत धारण कर लिए। इसके बाद आचार्य श्री १०८ महावीरकीतिजी महाराज से आपने अषाढ़ सुदी दून विक्रम संवत् २०२४ में हुमच ( दक्षिण ) में मुनि दीक्षा ले ली। आपने हुमच, कुन्थलगिरि गंजपंथा आदि स्थानों पर चातुर्मास कर धर्मवृद्धि की । आपने तीनों रसों का त्याग कर दिया है।
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मुनिश्री नेमिसागरजी महाराज आठ मार्च सन् उन्नीस सौ तोस में राजस्थान के नरवाली (बांसवाड़ा) नामक स्थान में माता श्रीमती जक्कुबाई की पुनीत कुक्षि से आपका मंगलमयी जन्म हुआ। आपके पिताजी का नाम श्रीमान् नाथूलालजी है । आपका बचपन का नाम छगनलाल था। बचपन से ही आप अचंचल एवं सारल्यभित थे।