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दिगम्बर जैन साधु
[२८३ प्रायिका भरतमतीजी आपका जन्म हमाई जिला डूंगरपुर निवासी श्री जीतमलजी सिंघवी के यहां कार्तिक सुदी १५ सम्वत् १९८४ में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती माणकवाई था। आपका गृहस्थावस्था का नाम चमेलीबाई था । आपकी शादी रामगढ़ में श्री गणेशलालजी के साथ हुई। अशुभ कर्मों के उदय से ५ वर्ष बाद आपको वैधव्य दुःख सहन करना पड़ा। आपने ब्रह्मचारी अजितसागर के निमित्त से दो प्रतिमा धारण को जिससे आपमें विशेष वैराग्य आया। उसके बाद आचार्य श्री १०८ धर्मसागरजी के शिष्य दयासागरजी से सम्वत् २०३४ में क्षुल्लिका दीक्षा ली उसके बाद आपने संघ सहित गांव लोहारिया में चातुर्मास किया। वहां आपने ३२ उपवास किए । उसके बाद ऐलक पार्श्वकीतिजी के संघ में चलकर श्री सोनागिरि आयीं । आने के पश्चात् आपने आर्यिका दीक्षा लेने का निर्णय लिया और आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज से सम्वत् २०३६ श्रावण सुदी १२ रविवार तारीख ५-८-७६ को सोनागिर में प्रायिका दीक्षा ली । उस समय आपका नाम भरतमती माताजी रखा गया।
क्षुल्लिका वैराग्यमतीजी
प्रापका जन्म जिला डूगरपुर के साबला गांव में जाति दशा हुमड़ में मातेश्वरी लक्ष्मीदेवी के कुख से संवत् २०१४ में हुआ। आपका नाम कचरीबाई पिताजी का नाम रोहिन्दा लक्ष्मीलालजी था।
आपकी माताजी का स्वभाव भद्र परिणामी है और उनकी धर्म के प्रति अच्छी रुचि है । आपकी शादी जिला बांसवाड़ा के गांव खमेरा में हेमराजजी के सुपुत्र कन्हैयालालजी के साथ हुई कन्हैयालालजी की यह दूसरी शादी थी। गृह कलह के कारण आपके जीवन में मोड़ आया । इस कारण से आपमें वैराग्य आया। उसके बाद मुनि दयासागरजी का संघ मिला, जहां क्षुल्लक पार्श्वकीर्तिजी के सहयोग से गांव घाटोल में आपने क्षुल्लिका दीक्षा ली । तबसे आप वैराग्यमती माताजी के नाम से पुकारी जाने लगीं।