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दिगम्बर जैन साधु
श्रार्थिका दयामतोजी
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पूज्य १०५ श्री दयामती माताजी का स्वभाव दयामय ही है । आपका स्वभाव हर समय पर उपकार में ही रहता है आपके पिता श्री गोरीलालजी सिंघई माता श्री महारानी की कुक्षी से आपका जन्म सागर में हुआ । आपका जन्म नाम नन्हींबाई रक्खा गया । नन्हीं बाई १५ वर्ष की हुई और माता पिता को शादी की चिन्ता होने लगी और आप की शादी छोटेलालजी सिंघई से करदी
परन्तु बाल बच्चे नहीं होने के कारण अपने धर्म ध्यान में लीन होते रहे छोटी आयु में ही धर्म ध्यान में रहने से २५ वर्ष घर में रहकर फिर वैधव्य अवस्था प्राप्त होने पर घर में मन नहीं लगा और साधु सम्पर्क में आगई और अपना धर्म ध्यान करती रहीं परन्तु मन में शान्ति नहीं रहती थी फिर सं० २०१८ में आ० श्री धर्मसागरजी महाराज से दूसरी प्रतिमा के व्रत ग्रहण कर लिये और आ० क० श्री श्रुतसागर जी म० से टोडारायसिंह में सातवीं प्रतिमा ली । व्रतों में रहकर अपना धर्म साधन करते रहे फिर वैराग्य भावनाओं की जागृति हुई और श्रुतसागरजी म० से निवेदन किया कि मुझे आगे बढ़ना है इसमें रहकर आत्म कल्याण नहीं होता । म० श्री ने आपको किशनगढ़ में आर्यिका दीक्षा दे दी । सं० २०२४ से आप अपना धर्म ध्यान सुचारु रूप से करती रही हैं ।