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दिगम्बर जैन साधु
मुनिश्री बोधसागरजी महाराज
मुनि श्री का जन्म बुन्देलखंड में सागर जिले के अन्तर्गत मडखेरा नामक ग्राम में हुआ था। उनके माता-पिता धर्मात्मा थे । बचपन से ही धर्म में बहुत रुचि थी । आचार्य श्री धर्मसागरजी से इन्होंने खुरई में क्षुल्लक दीक्षा ली । ३ साल क्षुल्लक रहे । उसके बाद गुरु श्री धर्मसागरजी से मुनि दीक्षा ले ली और संघ में रहकर स्वाध्याय करने लगे । मुनि दीक्षा लेकर अनेकों तीर्थस्थानों की वन्दना की अन्त में मुजफ्फरनगर में आचार्य श्री के सान्निध्य में समाधि को धारण कर शरीर को छोड़ा ।
संसारी जीव जो वीतराग भगवान की शरण में आते हैं, वे आपके स्नेह से नहीं आए हैं, किन्तु आपके चरण कमलों की शरण में आने का कारण अनेक प्रकार के दुःखों से भरा हुआ यह संसाररूपी महासागर ही है । जिसप्रकार गर्मी के दिनों में सूर्य से संतप्त होकर यह जीव छाया और जल से अनुराग करता है, क्योकि छाया और जल संताप को दूर करने वाले हैं, इसीप्रकार आपके चरणकमल भी संसार के दुःखों को दूर करने वाले हैं, इसलिए संसार के दुःखों से अत्यन्त दु:खी हुए प्राणी उन दुखों को दूर करने के लिए आपके चरण कमलों की शरण लेते हैं । इसलिए आपने मुनिव्रत अंगीकार किया ।
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