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दिगम्बर जैन साधु मुनिश्री दयासागरजी
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पू० मुनि श्री दयासागरजी का जन्म स्थान राजस्थान को ऐतिहासिक वीर भूमि जि० चित्तौड़गढ़ में ग्राम बडून है आपने सं० १९८८ को श्री राजाबाई की कुक्षि से जन्म लिया । आपके पिता का नाम रामबगस जी था । वघेरवाल जाति में आपने जन्म लेकर अपनी जाति का नाम ऊँचा किया। गृहस्थ अवस्था का नाम श्री कस्तूरचन्दजी था। शिक्षा सामान्य रही पारिवारिक समस्या आ जाने से शिक्षा को अधूरा हो छोड़ दिया तथा व्यापार कार्य करने लगे। बालकपन से ही धर्म के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति अपूर्व थी। घर की खेती होती थी तो उस कार्य में हिंसा अधिक होती देखकर आपके मन में वैराग्य के भाव उत्पन्न हुए तब आप गृहस्थी
के कार्यों को छोड़कर आचार्य श्री धर्मसागरजी की शरण में आए तथा टौंक ( राजस्थान ) में आपने आचार्य श्री से क्षुल्लक दीक्षा धारण की। संघ में रहकर आप शास्त्र स्वाध्याय करते एवं वैराग्य की ओर आपका लक्ष्य बढ़ता रहा तत्पश्चात् श्री महावीरजी में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा पर आपने मुनिदीक्षा अंगीकार कर ली। आप भारतवर्ष के समस्त तीर्थों की पैदल यात्रा कर आत्म साधना कर रहे हैं । आप सरल एवं सौम्यता की मूर्ति हैं। आप आचार्य श्री के आदेशानुसार उप संघ का भी संचालन कर रहे हैं । आप तपः साधना के कीर्तिमान पुरुषार्थी सन्त शिरोमणि मुनिराज हैं ।
आपके द्वारा अभी तक १६ दीक्षाएं दी जा चुकी हैं । आप मूक साधना के प्रतीक मुनिश्री हैं।