________________ 174 ] दिगम्बर जैन साधु - मुनि श्री सुपार्श्वसागरजी महाराज जयपुर प्रान्त के सारसोप ग्राम में चैत्र वदी चौथ सम्वत् 1958 के दिन मंगल वेला में परम शीलवती माता सुन्दरबाई की कुक्षि से अग्रवाल सिंहल गोत्र में आपका जन्म हुआ / आपके पिता श्री छगनलालजी ने आपका जन्म नाम घासीलाल. रखा। . आपके पिताजी ग्राम के प्रमुख प्रतिष्ठित व्यक्ति थे / ग्राम में इन्हीं का शासन था। जब आपका जन्म हुआ था, आपके ' पिताजी एक बड़े जमींदार थे / आप अपने माता पिता के प्रथम पुत्र होने के कारण अत्यन्त प्रिय व लाडले थे। जन्म के समय mar ड़ा उत्सव मनाया गया था / आपके पिताजी तीन भाई थे। .. ... '.... आपसे छोटे दो भाई और हुए / बड़े श्री रामनिवासजी हैं / इन्होंने शादी कराने का विचार नहीं किया / आजकल घर पर ही व्यापार करते हुये श्रावकों के कर्तव्यों का पालन कर जीवनयापन कर रहे हैं / छोटे भाई श्री राजूलालजी थे। माता पिता को दो सन्ताने प्रायः विशेष लाडली होती हैं / प्रथम और अन्त की सन्तान / अतः आपके छोटे भाई श्री राजूलालजी विशेष प्रिय व लाडले होने के साथ ही उदार प्रकृति, सन्तोषी एवं कार्य कुशल युवक थे। शादी के बाद उनके एक पुत्र श्री भैरवलालजी हुए इसके पश्चात् असमय ही में उनका देहावसान हो गया। विक्रम सम्वत् 1971 में जबकि आपकी उम्र मात्र 13 वर्ष की थी, पिताजी ने आपके विवाह का निश्चय किया, एवं ग्राम बैंड के सेठ रामनाथजी की सुपुत्री श्रीमती ज्ञारसीदेवी के साथ आपका विवाह कर दिया / बैंड ग्राम एक अच्छा कस्बा है जहां पर जैनियों की अच्छी जन-संख्या के साथ ही सुन्दर जैन मन्दिर है। शादी के पश्चात् आपके तीन पुत्र हुए / अन्तिम पुत्र का जन्म विक्रम सम्वत् 1986 में शादी के 15 वें वर्ष वाद हुआ था। प्रथम दो पुत्रों की तो बाल्यावस्था हो. में मृत्यु हो चुकी थी। तृतीय पुत्र श्री रामपालजी के जन्म के 6 मास वाद ही आपकी धर्म पत्नी का साधारण सी बीमारी में धर्म-ध्यान पूर्वक देहावसान हो गया। पुत्र रामपाल का लालन-पालन आपकी माताजी ने ही किया / आजकल श्री रामपालजी लेन-देन एवं कपड़े का ही व्यवसाय करते हैं। व्यवहार कुशल, योग्य एवं उदार होने के कारण ग्राम में आपकी प्रतिष्ठा है /