________________ दिगम्बर जैन साधु [ 166 -शुभावसर पर आपने प्राचार्यवर श्री वीरसागरजी महाराज से सातवीं प्रतिमा के व्रत - अङ्गीकार कर लिए। इसी बीच अयोध्या में आए धार्मिक संकट को दूर करने में. आपने जो. विजयः पाई वह बहुत सराहनीय है / घटना इस प्रकार है : आचार्यवर श्री देशभूषणजी महाराज की सत्प्रेरणा से श्री पारसदासजी आदि. दिल्ली वालों की ओर से तीर्थ क्षेत्र अयोध्या में भगवान ऋषभदेव की 33 फुट उत्तुङ्ग खड्गासन सुन्दर संगमरमर की मूर्ति 24 अक्टूबर 1957 को अयोध्या स्टेशन पर आई थी / मूर्ति एक स्पेशल गाड़ी पर रखकर जैक आदि यांत्रिक साधनों द्वारा स्टेशन से एक बगीचे में लाई जा रही थी। एक मोड़ पर थोड़ी-सी उतार पड़ने के कारण गाड़ी स्वतः 2-3 फीट आगे चल दी। मूर्ति का कन्धा एक / मकान के कोने से लग गया जिससे सारा मकान बीच से दरार खा गया। इस पर अयोध्या के कुछ पण्डों ने मिलकर मूर्ति को तोड़ने और नग्न मूर्ति अयोध्या में स्थापित न करने की जिद्द की। इस सङ्कट में दिल्ली वासियों ने मई 1958 में आपको अयोध्या भेजा / ( लेखक भी उस समय अयोध्या में ही अध्ययन करता था। ) आप उस समय ब्रह्मचारी ही कहलाते थे। आपने वहाँ के विद्रोहियों को नम्रता एवं प्रेम पूर्वक समझाया। अयोध्या के काफी अजैन भाई आपसे प्रभावित हुए। ऐसा समय देखकर आपने अनेकों मांसाहारियों को मांस तथा मद्य सेवन न करने के नियम लिवाए / इस प्रकार कार्य सम्पन्न कर तया विद्रोहियों के हृदय में प्रेम की धारा बहाकर आप वापिस दिल्ली लौट आए। समय वीता और परिणामों में निर्मलता आई / जब प्राचार्य श्री शिवसागरजी महाराज का संघ अजमेर आया तव आप दिल्ली से अजमेर पाए और घर पर यह समाचार भेज दिया कि मैंने रेल और मोटर का त्याग कर दिया है तथा दीक्षा ले रहा हूं। आपके पुत्र सपरिवार आए और बोले पिताजी मैं आपको हवाई जहाज द्वारा घर ले जाऊंगा तथा दीक्षा नहीं लेने दूंगा। धन्य है वह समय जब पुत्रों को मोह और पिता को प्रबल वैराग्य / ऐसे समय में पिता पुत्र की नेह निवृत्ति का दृश्य / आपने अपने निश्चय को नहीं बदला तथा कार्तिक सुदी एकादशी सम्वत् 2016 के दिन आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ले ली। क्षल्लक दीक्षा के बाद प्रापका पहला चातुर्मास सुजानगढ़ ग्राम में हुआ। चातुर्मास के समय एक दिन पारणा कर रहे थे तो तीन मक्खियाँ लड़ती हुई दूध में गिर पड़ी और मर गई / जिससे आपको शुद्ध वैराग्य की भावना का उदय हुआ और आपने आचार्य श्री से मुनि दीक्षा की विनय की फलतः आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज ने सुजानगढ़ में अपार जन-समूह के बीच जयध्वनि के साथ कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी सम्वत् 2017 के शुभ दिन आपको दिगम्बरी मुनि दीक्षा दी।