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जागो लोगो जगत के, बीती काली रात। हआ उजाला धर्म का, मंगल हुआ प्रभात ॥
आओ मानव मानवी, चलें धर्म के पंथ । धर्म पंथ ही शांति पथ, धर्म पंथ सुख पंथ ।।
प्रज्ञा, शील, समाधि की, बहे त्रिवेणी धार। जन जन का होवे भला, जन जन का उपकार ।
द्वेष स्नेह
और दुर्भाव का, रहे न नाम निशान। और सद्भाव से, भर लें तन-मन-प्राण ॥
खंड-खंड हो जाति का, संपति का अभिमान । शुद्ध साम्य फिर से जगे, हो जन जन कल्याण ॥
अहंकार ममकार की, टूटे सभी दिवार । उमड़े मन में प्यार की, धर्म गंग की धार ।